आत्म-स्वीकृति: खुद को स्वीकारना और बदलने की शुरुआत
क्या आप अक्सर खुद से नाराज़ रहते हैं या उम्मीदों पर पूरे ना उतरने पर खुद को दोष देते हैं? आत्म-स्वीकृति मतलब अपनी कमजोरियों और खूबियों दोनों को बिना कठोर निर्णय के स्वीकार करना। यह किसी जादू की तरह सब ठीक नहीं कर देगा, लेकिन रोज़ की ज़िंदगी में हल्का पटाक्षेप जरूर लाता है — तनाव कम होता है, फैसले साफ़ होते हैं और रिश्ते बेहतर बनते हैं।
छोटे और असरदार कदम
आसान अभ्यास से शुरू करें जो रोज़ हो सके। हर सुबह镜 सामने 1 मिनट के लिए तीन बातें कहें — "मैं पूरी कोशिश कर रहा/रही हूँ," "मैं अभी भी सीख रहा/सीख रही हूँ," और एक अच्छी बात जो आपने कल की। यह सीमित समय का काम है और दिमाग पर असर तेज़ होता है।
जर्नलिंग करें: हर शाम 5 मिनट में तीन ऐसी चीज़ें लिखें जिनके लिए आप खुद का धन्यवाद करते हैं। यह आदत धीरे-धीरे नकारात्मक सोच को चुनौती देती है।
छोटे लक्ष्य बनाएं। बड़े बदलाव की बजाय 7 दिन के छोटे टास्क रखें — जैसे एक नई चीज़ आज़माना या किसी नम्र तारीफ़ को स्वीकार करना। छोटे लक्ष्य पूरे होने से आत्म-विश्वास बढ़ता है और आप खुद को बेहतर महसूस करते हैं।
सीमाएँ निर्धारित करना सीखें। हर बार 'हाँ' कहने की वजह से आप थकते हैं। सरल तरीके अपनाएं: पहले सोचें, फिर जवाब दें। जरूरत पड़े तो 'मैं अब नहीं कर पाऊँगा/पाऊँगी' कहने में हिचकिचाएँ नहीं।
आम मुश्किलें और उनका हल
अगर आप खुद की तुलना दूसरों से करते हैं तो यह रोकें — तुलना अक्सर असली स्थिति नहीं दिखाती। सोशल मीडिया पर वक्त सीमित रखें और अपने ध्यान को बस अपने छोटे-छोटे प्रोग्रेस पर रखें।
परफेक्शनिस्ट होने पर छोटी-छोटी असफलताएँ आपको रोक सकती हैं। इसके लिए 'पर्याप्त अच्छा' का नियम अपनाएँ — काम पूरा हो तो बढ़िया, पर कमी दिखे तो सुधार करिए, लेकिन रोकिए नहीं।
पैठी हुई शर्म या पुराने दुख कभी-कभी खुद से जुड़ने में रुकावट बनते हैं। ऐसे में धीरे-धीरे सुरक्षित लोगों के साथ अनुभव साझा करें या प्रोफेशनल मदद लें। थेरेपी, कोचिंग या सहायक ग्रुप्स से बहुत फर्क पड़ता है।
कुछ साधारण उपकरण जो मदद करते हैं: साँस पर ध्यान (2 मिनट ब्रेक), 5-4-3-2-1 ग्राउंडिंग तकनीक (जब चिंता हो), और रोज़ाना छोटे कामों की सूची जिनमें सिर्फ़ एक-एक लक्ष्य हो। किताब के रूप में Brené Brown की "The Gifts of Imperfection" (अनुवाद उपलब्ध है) अक्सर लोगों को आत्म-स्वीकृति समझने में मदद करती है।
एक आख़िरी बात: बदलाव रातों-रात नहीं आता। लेकिन हर दिन एक छोटा कदम आपसे दूरी घटाता है। आज एक छोटा अभ्यास चुनें — शीशे में अपना नाम सुनना, एक अच्छा काम लिखना, या किसी सीमा के लिए 'ना' कहना — और कल फिर एक कदम बढ़ाइए। यही लगातार अभ्यास आपको असल आत्म-स्वीकृति की ओर ले जाएगा।

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