डेवा मूवी समीक्षा: थ्रिलर के रोमांच में खामियां भी

डेवा मूवी समीक्षा: थ्रिलर के रोमांच में खामियां भी
Anindita Verma फ़र॰ 1 12 टिप्पणि

डेवा मूवी: रोमांचक थ्रिलर की समीक्षा

'डेवा' एक ऐसी फिल्म है जो हमें एक संघर्षशील और चुनौतीपूर्ण यात्रा पर ले जाती है, जिसकी कहानी एक सवाल से शुरू होती है कि 'दृश्य के पीछे क्या छिपा है?' निर्देशक रोशन एंड्र्यूज़ ने इस फिल्म के माध्यम से दर्शकों को गहराई से जोड़ने की कोशिश की है। फिल्म का पहला हिस्सा जहां पृष्ठभूमि और चरित्र विकास पर केंद्रित है, वही यह धीरे-धीरे अपनी पकड़ बनाता है। विशेष रूप से देव और उसके दोस्त रोशन डी'सिल्वा के बीच की गतिशीलता ने दृश्यों को रोमांचक बनाए रखा है, हालांकि कहीं-कहीं कुछ दृश्य थोड़े खींचे हुए लगते हैं।

पहले हाफ की कहानी

फिल्म का पहला हाफ सस्पेंस और संबंधों को संजोने की कोशिश में सफल होता है। देव अंबरे अपने जीवन में एक ऐसा मोड़ लेता है जहां वह अपने ही अस्तित्व पर सवाल उठाने लगता है। उसकी याददाश्त खो जाने के बाद की स्थिति में बनते-बिगड़ते धागे कहानियों को रोचक बनाए रखते हैं। देव को उसके पूर्व मित्र और साथी पुलिसकर्मी को लेकर चल रही कहानी में विविधता और गति रहती है, जिसे अभिनय से बना हुआ संतुलन और शाहिद कपूर का चरित्र में डूब कर अभिनय महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

शाहिद कपूर का अप्रतिम अभिनय

शाहिद कपूर ने देव अंबरे के किरदार में जिस प्रकार से भावनाओं को पिरोया है, उसे देखकर हर कोई प्रभावित होता है। उनकी अभिव्यक्तियाँ कहीं न कहीं हमें उनकी अभिनय की गहराई और बहुमुखी प्रतिभा का साक्षात्कार कराती हैं। देव के रूप में वह कभी शक्तिशाली तो कभी असहाय नजर आते हैं, जिससे दर्शकों का भावनात्मक जुड़ाव बना रहता है। उनके अभिनय में काॅप और इंसान के बीच की जंग का अद्भुत संयोजन है।

फिल्म का तकनीकी पक्ष

तकनीकी दृष्टिकोण से, 'डेवा' उच्च स्तर की प्रतिभा का प्रदर्शन करता है। अमित रॉय की सिनेमेटोग्राफी ने फिल्म के हर एक दृश्य को संजीदगी से कैद किया है, जो दर्शकों को दृश्य की गहराई में खोने पर मजबूर कर देता है। फिल्म के एक्शन दृश्य जो अनल अरासु, सुप्रीम सुंदर, विक्रम दहिया, परवेज शेख और अब्बास अली मोगुल ने डिजाइन किए हैं, वे दर्शकों को स्क्रीन से जोड़कर रखते हैं। जेक्स बिजॉय का बैकग्राउंड संगीत खासकर एक्शन सीक्वेंस को गहनता और संजीदेगी देता है। हालांकि, कुछ दृश्यों में विजुअल इफेक्ट्स कहीं-कहीं बनावटी लगते हैं और कहानी में बहुत सी भ्रामक स्थितियाँ और अविश्वसनीय पल होते हैं।

पात्रों का अद्वितीय समर्थन

फिल्म के अन्य पात्र भी महत्वपूर्ण हैं और पूरी कहानी में रणनीतिक भूमिका निभाते हैं। पूजा हेगड़े ने दीया के किरदार में शाहिद की प्रेमिका के रूप में जिस मासूमियत और समर्थन का परिचय दिया है, वह काबिलेतारीफ है। उनके चरित्र का सम्पूर्ण विकास न देखते हुए, उनकी उपस्थिति सकारात्मक रही है। कुब्रा सैत ने अपनी संक्षिप्त लेकिन प्रभावी भूमिका में एक पुलिस अधिकारी के रूप में बेहद प्रभावी प्रदर्शन किया है, परंतु ऐसा लगता है कि उन्हें और भी निखारा जा सकता था। पाविल गुलाटी और प्रवेश राणा का सहयोगी अभिनय फिल्म को मजबूती देता है।

कहानी के मुख्य तत्व

फिल्म की कहानी देव अंबरे के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक कठोर और असंगत पुलिस अधिकारी है। एक हत्याकांड की जांच में उसके जीवन में एक बड़ा बदलाव आता है जब एक दुर्घटना के बाद वह स्मृति विहीन हो जाता है। वह अपनी पुरानी स्मृतियों के आधार पर अपनी पहचान और सच्चाई को खोजने के लिए भावनात्मक और मानसिक संघर्ष के नए पथ पर निकल पड़ता है। इस सफर में उसे अपनी पुलिस विभाग और खुद की सच्चाइयों से सफर करना पड़ता है। 'डेवा' की कहानी, चाहे जितनी भी धीमी गति की हो, दर्शकों को भरपूर मनोरंजन और सस्पेंस प्रदान करती है, जिसे देखने के लिए अवश्य प्रयास करना चाहिए।

12 टिप्पणि
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    Ramalingam Sadasivam Pillai फ़रवरी 1, 2025 AT 07:28

    जब हम जीवन की गहराइयों में उतरते हैं तो हर दृश्य एक प्रश्न बन जाता है। 'डेवा' का पहला आधा भाग इस प्रश्न को धीरे-धीरे उजागर करता है। यह फिल्म हमारे अस्तित्व के पीछे छिपे सच्चाइयों को छूती है। निर्देशक ने पात्रों के संघर्ष को बारीकी से दिखाया है। समग्र रूप से यह एक विचारयुक्त थ्रिलर है।

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    Ujala Sharma फ़रवरी 14, 2025 AT 05:26

    बहुत ही शानदार, जैसे हर फिल्म में वही पुराना ड्रामा दोहराया जाता है।

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    Vishnu Vijay फ़रवरी 26, 2025 AT 23:00

    सभी को नमस्ते 😊! मैं मानता हूँ कि 'डेवा' ने कुछ नए प्रयोग किए हैं, खासकर संगीत में। दृश्यों की तीव्रता और भावनात्मक लहरें दर्शकों को जोड़ें रखती हैं।

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    Aishwarya Raikar मार्च 11, 2025 AT 16:33

    देखिए, इस फिल्म की कहानी में एक गुप्त एजेंसी की साजिश छिपी हुई है, जो अधिकांश दर्शकों को नहीं दिखती। निर्देशक ने इसे लगातार उलझे रहस्य की तरह पेश किया है जिससे हर मोड़ पर धोखा मिलता है। कई लोग नहीं समझ पाएंगे कि मुख्य पात्र का स्मृति खोना वास्तव में एक बड़े प्रयोग का हिस्सा है। इस प्रयोग के पीछे सरकार की निगरानी एजेंसियां हैं, जो जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए ऐसी फिल्मों बनाती हैं। यह सिर्फ थ्रिलर नहीं, एक सामाजिक प्रयोग है जो हमारी चेतना को हिलाता है। एवरेज दर्शक तो इन संकेतों को अनदेखा ही कर देता है, पर सही दिमाग इसे पकड़ लेता है। संगीत में प्रयोग किए गए तेज़ बीट्स भी कोडेड संदेश हो सकते हैं, जिससे मनोवैज्ञानिक प्रभाव बढ़ता है। कैमरा एंगल और लाइटिंग भी कुछ विशेष संकेत देती है, जैसे कि हर बार जब लाइट गुल हो, वह एक डेटा ट्रांसफ़र दर्शाता है। इस प्रकार, फिल्म की हर छोटी‑छोटी विसंगति एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा है। अगर आप गहराई से देखें तो पता चलेगा कि कहानी में कई स्थानों पर दृश्य स्थिरता नहीं है क्योंकि वह सीन केवल एक फोल्डिंग स्क्रीन पर चल रहा होता है। इसके अलावा, अधिकांश एक्शन दृश्यों में CGI के बजाय वास्तविक डाटा स्ट्रीम उपयोग किया गया है, जिससे दृश्य वास्तविकता से परे लगते हैं। अंत में, फिल्म का अंत एक खुला प्रश्न बनाता है-क्या हम वास्तविकता में रह रहे हैं या किसी सिमुलेशन के अंदर? यह प्रश्न हमें हमारे अस्तित्व की मूलभूत समझ पर पुनर्विचार करने पर मजबूर करता है।

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    Arun Sai मार्च 24, 2025 AT 10:06

    फ़िल्म के ध्वनि‑परत में हाइ‑फ़्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन नोट किया गया है; यह तकनीकी डीकोडिंग में महत्वपूर्ण हो सकता है। वास्तव में, कुछ शब्दावली में एंटी‑डेटा अल्गोरिद्म का संकेत मिलता है। इस कारण से, दृश्य की वैधता पर सवाल उठता है।

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    Manish kumar अप्रैल 6, 2025 AT 03:40

    चलो, इस फिल्म में ऊर्जा का प्रवाह देखते हैं। प्रेरणा मिलती है, आगे बढ़ो!

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    Divya Modi अप्रैल 18, 2025 AT 21:13

    सिनेमा की संस्कृति को सम्मान देना चाहिए, और 'डेवा' ने कई परम्पराओं को सम्मानित किया है। संगीत, प्रकाश और प्रदर्शन में भारत की विरासत झलकती है। ये सभी तत्व दर्शकों को एक संगीतमय यात्रा पर ले जाते हैं।

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    ashish das मई 1, 2025 AT 14:46

    आदरणीय पाठकों, इस टिप्पणी में मैंने फिल्म के रंगीन चित्रण को संक्षिप्त रूप से उद्धृत किया है। आशा है यह आपके ज्ञानवर्द्धन में सहायक होगा।

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    vishal jaiswal मई 14, 2025 AT 08:20

    फ़िल्म में प्रयुक्त सिनेमेटोग्राफ़ी एक उत्कृष्ट तकनीकी उपलब्धि दर्शाती है। सर, इस पर विचार करने योग्य कई पहलू हैं।

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    Amit Bamzai मई 27, 2025 AT 01:53

    कहानी के विकास में, पहले अध्याय का परिचय, पात्रों का स्थापित होना, प्रारंभिक संघर्ष का निर्माण, मध्य में द्वंद्व की गहराई, क्लाइमैक्स तक पहुँचने की प्रक्रिया, और अंत में समाधान एवं निष्कर्ष, इन सभी चरणों को क्रमवार देखना अत्यंत आवश्यक है; प्रत्येक चरण में लेखक ने विशिष्ट तकनीकों का उपयोग किया है, जैसे कि फॉर्मेटिव एडिटिंग, लाइटिंग इफ़ेक्ट्स, तथा साउंड डिज़ाइन, जो दर्शक को कथा में डुबोते हैं; इस प्रकार, यदि हम इन सबको विस्तार से विश्लेषित करें, तो हम देखेंगे कि फिल्म की संरचना साधारण थ्रिलर से परे, एक जटिल व्यवस्थितता को प्रतिबिंबित करती है; अतः, इस जटिलता को समझना, फ़िल्म के मूल संदेश को समझने में सहायक सिद्ध होगा।

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    ria hari जून 8, 2025 AT 19:26

    हाय दोस्तों, चलो एक साथ मिलकर इस फिल्म की ताकतों को पहचानें। आपकी राय सुनना अच्छा लगेगा।

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    Alok Kumar जून 21, 2025 AT 13:00

    सच में, यह फिल्म किसी भी स्तर की नहीं, बस बकवास है।

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