लोकसभा अध्यक्ष क्या करते हैं — सरल भाषा में समझें

आपने संसद में अक्सर देखा होगा कि जब बहस तेज़ हो जाती है या सदन में शोर-शराबा होता है, तो एक व्यक्ति सबको चुप करवा देता है — यही लोकसभा अध्यक्ष (Speaker) होते हैं। उनका काम सिर्फ अध्यक्षता नहीं, बल्कि नियम बनाए रखना, विधेयकों की प्रक्रिया तय करना और सदन की मर्यादा बनाए रखना भी है।

लोकसभा अध्यक्ष सदस्यों में से चुना जाता है और चुनाव के बाद उन्हें सदन की कार्यवाही संचालित करने का अधिकार मिलता है। पारंपरिक तौर पर अध्यक्ष पद पर बैठे व्यक्ति से निष्पक्ष रहने की उम्मीद की जाती है — मतलब जब वे मंच पर हों, तो राजनीतिक रंग पीछे छूटने चाहिए।

मुख्य अधिकार और जिम्मेदारियाँ

लोकसभा अध्यक्ष के पास कुछ निर्णयकारी अधिकार होते हैं जिनका असर सीधे कानून और राजनीति पर पड़ता है:

- सदन की कार्यवाही चलाना और सदस्यों की बातों के लिए समय देना।

- नियमों (Rules of Procedure) की व्याख्या करना और सर्वसम्मति न होने पर अंतिम निर्णय देना।

- मनी बिल (Money Bill) का प्रमाणन: कौन-सा बिल मनी बिल है, यह प्रमाणित करने का अधिकार सिर्फ अध्यक्ष के पास होता है — और इससे विधेयक की मंजूरी की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

- अकस्मात नियम-भंग या अनुशासन संबंधी मामलों में कदम उठाना; सदन से सदस्य को निलंबित करने का आदेश देना भी शामिल है।

- राजनीतिक दल के अनुशासन से जुड़े मामलों में, विशेषकर एंटी-डिफेक्शन (Tenth Schedule) संबंधित फैसलों के लिए अध्यक्ष का निर्णय मांगा जा सकता है।

वास्तविक दुनिया में इसका क्या मतलब है?

सोचिए कोई बड़ा बिल पास होना है और विपक्ष उसे रोकना चाहता है — ऐसे समय में अध्यक्ष के पास नियमों की व्याख्या करके बहस का समय सीमित करने या वोटिंग की प्रक्रिया तय करने का अधिकार होता है। यही ताकत कभी-कभी विवादों की वजह भी बनती है, क्योंकि फैसलों से राजनीतिक नतीजे सीधे प्रभावित होते हैं।

एक और व्यावहारिक बात: अध्यक्ष आमतौर पर सदन की सार सामग्री (Hansard या कार्यवृत्त) और रिकॉर्डिंग की रिपोर्टिंग की निगरानी करते हैं। जनता और मीडिया के लिए यह जानकारी उपलब्ध रहती है — आप संसद की वेबसाइट या लोकसभा टीवी के माध्यम से बहस और निर्णय देख सकते हैं।

अगर आप साधारण नागरिक हैं और जानना चाहते हैं कि कोई कानून कैसे बना या किस कारण मामला चर्चित हुआ — अध्यक्ष के फैसलों और सदन की कार्यवाही का रिकॉर्ड सबसे भरोसेमंद स्रोत है।

अंत में, लोकसभा अध्यक्ष का पद सिर्फ एक नाम नहीं—यह संसद की पारदर्शिता, नियमों का पालन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सुरक्षा का मूल बिंदु है। जब अध्यक्ष निष्पक्ष रहकर नियमों के अनुसार निर्णय लेते हैं, तो संसद का काम सुचारु और भरोसेमंद बनता है।

लोकसभा अध्यक्ष चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने मिलाया हाथ

लोकसभा अध्यक्ष चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने मिलाया हाथ

Anindita Verma जून 26 0 टिप्पणि

18वीं लोकसभा के अध्यक्ष पद के चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने संसद में हाथ मिलाया। ओम बिरला को वॉइस वोट के माध्यम से अध्यक्ष चुना गया। मोदी और गांधी ने बिरला को बधाई दी और हाउस में विपक्ष की आवाज़ सुनी जाने की महत्वपूर्णता पर जोर दिया।

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