SCO बैठक में राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान पर झुकाव के चलते बयान पर हस्ताक्षर करने से किया इनकार

SCO बैठक में राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान पर झुकाव के चलते बयान पर हस्ताक्षर करने से किया इनकार
Anindita Verma जून 27 10 टिप्पणि

एससीओ बैठक में भारत का कड़ा रुख

किंगदाओ, चीन में 26 जून 2025 को आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) रक्षा मंत्रियों की बैठक में अनोखी स्थिति सामने आई। भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पहले से तैयार किए गए साझा बयान पर हस्ताक्षर करने से असाफ़ कर दिया। वजह थी– इस ड्राफ्ट में पाकिस्तान के बलूचिस्तान में आतंकवाद का उल्लेख तो किया गया, लेकिन कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए भीषण आतंकी हमले को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया। यह हमला 22 अप्रैल को हुआ था, जिसमें 26 नागरिक, जिनमें एक नेपाली नागरिक भी शामिल था, मारे गए थे और भारत की ओर से दोष पाकिस्तान समर्थित समूहों पर लगाया गया था।

राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में सीधे-सीधे पाकिस्तान का नाम तो नहीं लिया, लेकिन उन्होंने बहुत साफ शब्दों में कहा कि ‘फिर भी, SCO देशों को उन राज्यों की आलोचना करनी चाहिए, जो आतंक को राज्य की नीति के रूप में इस्तेमाल करते हैं और आतंकियों को पनाह देते हैं।’ यही नहीं, उन्होंने SCO के अंतर्गत आपसी सहमति से ऐसी कार्ययोजना की जरूरत भी बताई, जिससे आतंकवाद के सभी रूपों का निर्णायक मुकाबला किया जा सके।

पाकिस्तान की सफाई और क्षेत्रीय तनाव

पाकिस्तान की सफाई और क्षेत्रीय तनाव

बैठक में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व कर रहे रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने बैठक में अपने देश की ओर से पहलगाम हमले की निंदा दोहराई, लेकिन ध्यान हटाते हुए फिलिस्तीन और ईरान पर इज़राइल के हालिया हमलों का मुद्दा भी उठाया। इससे बैठक में एजेंडा और ज्यादा उलझ गया।

भारत के बयान के बाद SCO को संयुक्त बयान जारी करने का अपना प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। यह चीन की कोशिशों के लिए असहज स्थिति थी, क्योंकि चीन इस ब्लॉक के नेतृत्व में अक्सर क्षेत्रीय सहयोग पर जोर देता है, मगर इस बार यह ‘डिप्लोमैटिक सेटबैक’ बना। SCO में आमतौर पर सदस्य देशों की सहमति से ही कोई साझा बयान सामने आता है, लेकिन भारत की आपत्ति के चलते यह मुमकिन नहीं हो सका।

इस पूरे घटनाक्रम से एक बात बिल्कुल साफ हो गई कि भारत अब अपने राष्ट्रीय हितों, विशेषकर आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सख्त रुख अपनाने में झिझक नहीं दिखा रहा। राजनाथ सिंह ने बैठक के इतर चीन और रूस के रक्षा मंत्रियों के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी की, जिनमें सीमा सुरक्षा और आतंक-विरोधी सहयोग पर चर्चा हुई।

कुल मिलाकर, इस बार SCO की बैठक भारत-पाकिस्तान तनाव, आतंकवाद और वैश्विक राजनीतिक एजेंडों के टकराव का एक नया उदाहरण बन गई, जहां भारत ने बिना घुमाव के अपने हितों की सीधी और स्पष्ट पैरवी की।

10 टिप्पणि
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    tej pratap singh जून 27, 2025 AT 00:56

    देश का हित सबसे ऊपर है, इस तरह के झूठे बयानों को सैटर्न जैसा टाल देना चाहिए। भारत ने सही कदम उठाया, बाकी सब अपनी सच्ची मंशा दिखा रहे हैं।

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    Chandra Deep जुलाई 8, 2025 AT 21:40

    राजनाथ सिंह ने साहस दिखाया, यह दर्शाता है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी आवाज़ नहीं छुपाएगा। इस फैसले से भारत की सुरक्षा नीति में दृढ़ता आई है। हमें यही सिखना चाहिए कि अपने राष्ट्रीय हितों के लिये स्पष्ट खड़े हों। साथ ही यह दिखाता है कि सीमा के पार मदद का हाथ कभी नहीं छोड़ा जाना चाहिए

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    vishal jaiswal जुलाई 20, 2025 AT 11:26

    उक्त SCO सभा में प्रतिपादित बयान के मसौदे में सेक्टरल थ्रेट एसेसमेंट को ठीक से सम्मिलित नहीं किया गया था। परिणामस्वरूप ऑपरेशनल कॉन्टेक्स्ट में असंतुलन पैदा हो सकता है। भारत द्वारा इस असहिचता को व्यक्त करना एक स्ट्रेटेजिक मोमेंटम बन गया। यह कदम अंतरराष्ट्रीय सहयोगी फ्रेमवर्क में रेजिलिएंस को बढ़ाता है। अभद्रता के बजाय प्रोटोकॉल अनुपालन को प्राथमिकता देना चाहिए।

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    Amit Bamzai अगस्त 1, 2025 AT 01:13

    पहले तो यह समझना जरूरी है कि SCO जैसे मल्टी-डायमेंशनल मंच पर कोई भी निर्णय अकेले नहीं लिया जाता, बल्कि सभी सदस्य देशों की कूटनीतिक गणनाएँ मिश्रित होती हैं। इस संदर्भ में भारत की स्थिति को देखते हुए, राजनाथ सिंह ने जो रुख अपनाया वह केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का पहलू नहीं, बल्कि पूरे एशिया‑पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता से भी जुड़ा हुआ है। पहलगाम में हुए हमले ने फिर से यह स्पष्ट कर दिया कि बीकानेर‑हिंदुस्तानी आतंकियों का नेटवर्क सीमाओं को अनदेखा करता है, और यह नेटवर्क केवल एक देश तक सीमित नहीं है।
    जब हम इस बात को गहराई से विश्लेषण करते हैं, तो यह तथ्य उभर कर आता है कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान में सक्रिय एलाका कई बार आतंकवादी शिविरों का शिंगार बना रहा है, जिससे भारतीय सुरक्षा एजेंटों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    इसीलिए, भारत का यह स्पष्ट बयान कि ‘भूराजनीति में आतंक को नीति के रूप में इस्तेमाल करने वाले राष्ट्रों का खुला विरोध किया जाए’ इतिहास में एक प्रमुख मोड़ बन सकता है।
    यदि हम इस बात को और विस्तार से देखें तो, इस तरह की कूटनीतिक स्थिति में चीन और रूस जैसे प्रमुख शक्ति संपन्न देशों का रुख भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि ये देश अक्सर मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं।
    वर्तमान में चीन ने आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के साथ साथ सुरक्षा सहयोग को भी सुदृढ़ करने की कोशिश की है, परंतु यह देखना होगा कि क्या वह अपने स्वयं के रणनीतिक हितों के साथ इस कदम को तालमेल में रख पाता है।
    रूस की ओर से भी वह रूख बदला नहीं है, वह हमेशा से ही आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ कड़ा रुख अपनाता रहा है।
    अब बात आती है इस बात की कि इस मंच पर हम किस तरह के प्रोटोकॉल को लागू कर सकते हैं, जिससे सभी सदस्य राष्ट्र समान रूप से जवाबदेह हों।
    उदाहरण के तौर पर, एक संयुक्त टास्क‑फ़ोर्स की स्थापना की जा सकती है, जिसका उद्देश्य आतंकवादी वित्तपोषण का पता लगाना और उसे बाधित करना होगा।
    यह टास्क‑फ़ोर्स इंटर‑एजेंसी इंटेलिजेंस शेयरिंग को सुगम बना सकता है, जिससे प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा एजेंसियों को वास्तविक समय में जानकारी प्राप्त होगी।
    इसके अलावा, हम यह भी सुझाव दे सकते हैं कि प्रत्येक सदस्य देश अपने राष्ट्रीय स्तर पर एक ‘आतंक‑विरोधी सर्टिफिकेट’ जारी करे, जिसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर मान्य किया जाए।
    ऐसे सर्टिफिकेट के माध्यम से यह स्पष्ट हो सकेगा कि कौन से देश सक्रिय रूप से आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ काम कर रहे हैं और कौन नहीं।
    जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक किसी भी संयुक्त बयान की वैधता पर सवाल उठाया जा सकता है।
    आखिरकार, यह कहा जा सकता है कि भारत का यह कदम न केवल राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिये है, बल्कि यह पूरे एशिया‑पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता और शांति के लिये भी मायने रखता है।
    असली सवाल यह है कि क्या अन्य सदस्य इस पहल को समर्थन देंगे, या फिर अंतर्निहित भू‑राजनीतिक हितों के कारण उन्हें रोकेंगे।
    समय ही बताएगा कि इस दिशा‑निर्देश का प्रभाव किस हद तक रहेगा, लेकिन निश्चित है कि भारत का दृढ़ रुख एक नया मानक स्थापित कर सकता है।

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    ria hari अगस्त 12, 2025 AT 15:00

    अच्छा किया भारत ने, अब इसे और मजबूत बनाएं और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी आवाज़ को और सुनिए। साथ मिलकर हम सभी को सुरक्षित रख सकते हैं।

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    Alok Kumar अगस्त 24, 2025 AT 04:46

    यह सब तो बस पेंटिंग के पीछे की सच्चाई है कि Pakistan का नेटवर्क अभी भी देश के अंदर ही गहराई तक फैला हुआ है, और कोई भी गंभीर रणनीति बिना इस पर ध्यान दिए पूरी नहीं हो सकती। इस तरह के बयान में सिर्फ शब्दों का खेल नहीं, बल्कि वास्तविक डेटा की कमी स्पष्ट दिखाई देती है। हमें इस मुद्दे को लेयर बाय लेयर डिकम्पोज़ करके देखना चाहिए।

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    Nitin Agarwal अगस्त 29, 2025 AT 23:40

    भारत का ठोस रुख हमारे सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करता है।

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    Ayan Sarkar सितंबर 4, 2025 AT 18:33

    सही कहा तुम्हारे दिमाग की गहराई बहुत गहरी है, लेकिन आपस में ऐसे तर्क बनाना कि केवल पाकिस्तान ही दोषी है, थोड़ा अंधविश्वास जैसा लगता है। इस तरह के विचारों से निपटने के लिये हमें व्यापक जियो-पॉलिटिकल पर्सपेक्टिव की जरूरत है। नहीं तो हम खुद को वही पॉलिटिकल जाल में फँसा लेंगे।

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    Amit Samant सितंबर 10, 2025 AT 13:26

    यह देखना प्रेरणादायक है कि भारत ने अपने हितों की रक्षा में इतना स्पष्ट रुख अपनाया। इस भावना को जारी रखकर हम सभी को एकजुट होना चाहिए। भविष्य में इस तरह के निर्णयों से हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे को और मजबूत बनाया जा सकेगा। अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मान भी उसी के अनुसार बढ़ेगा।

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    Jubin Kizhakkayil Kumaran सितंबर 16, 2025 AT 08:20

    देश की गरिमा के लिए ऐसा कोई भी झुकाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, चाहे वह कौन भी हो। हमें हमेशा अपने विश्वसनीय रुख से आगे बढ़ना चाहिए।

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