सारिपोधा शनिवारम मूवी रिव्यू: मनोरंजक पहला हाफ, धीमा दूसरा हाफ

सारिपोधा शनिवारम मूवी रिव्यू: मनोरंजक पहला हाफ, धीमा दूसरा हाफ
Anindita Verma अग॰ 30 15 टिप्पणि

फिल्म 'सारिपोधा शनिवारम' की समीक्षा

फिल्म 'सारिपोधा शनिवारम' को दर्शकों में काफी उम्मीदों के साथ रिलीज़ किया गया है। फिल्म की अवधि लगभग 50 मिनट की है जो एक छोटे और क्रिस्प पठकथा को दर्शाती है। इसमें नानी ने मुख्य किरदार निभाया है, जिनका अभिनय प्रतिभाशाली और ऊर्जावान है, खासकर उनके 40 साल की उम्र के बावजूद।

फिल्म की शुरूआत एक बेहद रोचक और मनोरंजक ढंग से होती है। कहानी का पहली हाफ में प्रस्तुतीकरण इतना ज्वलंत है कि दर्शकों की रूचि बनी रहती है। यह भाग सबूत है कि कैसे निर्देशक ने गहन कथानक को गूंथने में अपना हुनर दिखाया है।

पहला हाफ: मनोरंजक और एंगेजिंग

पहले हाफ में कहानी की बुनावट और पात्रों की एंट्री बहुत ही शानदार ढंग से होती है। यहाँ निर्देशक ने अपने दर्शकों को बांधे रखने की पूरी कोशिश की है, और वे इसमें सफल भी हुए हैं। दृश्याकृति और कलेवर में कहीं भी कोई कमी नजर नहीं आती। संगीतमय बैकड्रॉप में जैक्स बिजॉय का संगीत सुनने का सुख बहुत ही प्रभावशाली लगता है। थिएटर के अच्छे साउंड सिस्टम में यह और अधिक विशेष बन जाता है।

फिल्म की कहानी में सुर्या के किरदार की मजबूती स्पष्ट नजर आती है। उनके द्वारा चुनी गई 'शनिवार' की दिन के पीछे की कारणवश की गई निर्णय कहानी को और भी दिलचस्प बना देती है। यह उनके बाल्यकाल के अनुभवों से जुड़ा हुआ है, और यह देखना दिलचस्प है कि कैसे यह पात्र विकास करता है।

दूसरा हाफ: धीमा और कम रोचक

फिल्म का दूसरा हाफ पहले हाफ की तुलना में कहीं अधिक धीमा और कम रोचक प्रतीत होता है। यहां पर कथानक की उत्तेजना कुछ हद तक मंद पड़ जाती है और दर्शकों को खींचने की शक्ति थोड़ी सी कम हो जाती है। हालांकि, नानी का अभिनय अब भी प्रभावित करने वाला है, मगर ओवरआल प्रभाव थोड़ा कम हो जाता है।

श्रीकाकुलम की पृष्टभूमि में होने वाली घटनाओं में भावनात्मकता की कमी दिखाई देती है। दर्शकों को यहां थोड़ी निराशा हो सकती है। खासकर अंतिम दृश्य में जब श्रीकाकुलम की स्थितियों को बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था। यह दृश्य कुछ हद तक विक्रमार्कुडु के स्टाइल की याद दिलाते हैं, लेकिन वही प्रभाव पैदा नहीं कर पाते।

फिल्म का सारांश

कुल मिलाकर, 'सारिपोधा शनिवारम' एक मनोरंजक फिल्म है जिसका पहले हाफ काफी जबरदस्त है लेकिन दूसरा हाफ थोड़ी मायूसी ला सकता है। फिर भी, जैक्स बिजॉय का संगीत और नानी का नायाब अभिनय इसे एक बार देखने लायक जरूर बनाते हैं। यह फिल्म पूरी तरह से परिवारों के लिए उपयुक्त है, जिसमें कोई भी अश्लील सामग्री नहीं है। अगर आप धीमे गति वाले दूसरे हाफ के लिए तैयार हैं, तो यह फिल्म निश्चित रूप से आपको आनंदित करेगी।

15 टिप्पणि
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    Darshan M N अगस्त 30, 2024 AT 03:14

    पहला हाफ वाकई काफी मज़ेदार था

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    prakash purohit सितंबर 3, 2024 AT 18:20

    फिल्म का पहला हाफ इतना तेज़ी से खींचता है जैसे कोई गुप्त एजेंडा पर्दे के पीछे चल रहा हो। नानी की ऊर्जा तो कब्रिस्तान की तरह घनी है, पर क्या उन्होंने असली कहानी को मोड़ दिया है? कहानी के कई हिस्से में सन्देश ढककर रखा गया लगता है, जैसे कंट्रोलर लोगों के मन को दिशा‑निर्देश देना चाहता हो।

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    manish mishra सितंबर 8, 2024 AT 09:27

    मैं यहाँ थोड़ी अलग सोच रखता हूँ, मेरा मानना है कि यह सब एक साधारण मनोरंजन‑मत्री फिल्म है, कोई गुप्त षड्यंत्र नहीं 😏। संगीत और नानी का अभिनय वास्तव में दिलचस्प है, लेकिन दूसरे हाफ की धीमी गति को इधर‑उधर की ‘कथा‑आधीनता’ कहा गया तो बहुत ही बेमेल होगा।

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    sunil kumar सितंबर 13, 2024 AT 00:34

    सारिपोधा शनिवारम के पहले हाफ में दर्शकों को बौद्धिक उत्तेजना का वह अभिरुचिकर पैकेज मिला है। यह भाग न केवल कथा‑संरचना में जटिलता लाता है, बल्कि पात्रों के आयामों को भी बहुआयामी बनाता है। निर्देशक ने सिनेमैटिक भाषा को अभिव्यक्त करने के लिए मेटा‑फ़्रेमवर्क को अपनाया, जिससे दृश्य‑सम्पूर्णता में गहनता उत्पन्न होती है। नानी का परफ़ॉर्मेंस, जो इम्प्लोसिव एनर्जी से सुसज्जित है, वह प्रस्तुति के फॉर्मेट के साथ सिंक्रनाइज़ हो जाता है। संगीतकार जैक्स बिजॉय की स्कोरिंग ने यथार्थवादी ध्वनि‑परिदृश्य को सेंट्रल थीम के साथ इंटरपोलेट किया है, जिससे दर्शक भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं। इस प्रक्रिया में बैकग्राउंड साउंड डिज़ाइन ने मफ़ीशन्स को एम्बेड किया है, जो मानो एक ऑडियो‑पॉलिमॉर्फ़िज़्म का रूप ले रहा है। कथा में सुऱ्या का चरित्र विकास, जो स्मृति‑पुंज से उत्पन्न संकेतों को प्रतिबिंबित करता है, वह प्रेक्षक को प्रतिमानात्मक स्तर पर चुनौती देता है। पहला हाफ की गति, जो पेसिंग‑इंटेंसिटी के साथ सामंजस्य रखती है, दर्शक के एंगेजमेंट को स्थिर रखती है। इसके अतिरिक्त, फ़ोटोग्राफी में कलर‑ग्रेडिंग ने नॉस्टैल्जिक टोन को स्थापित किया है, जो सांस्कृतिक रेज़ोनेंस को बढ़ाता है। फ़िल्म के संवादों में प्रयोगशील शब्दावली का प्रयोग, जैसे \"डिजिटल‑वेस्टलैंड\" और \"पश्चात‑कालिक पुनरावृत्ति\", दर्शकों को इंटेलेक्चुअल परस्परक्रिया के लिए प्रेरित करता है। दूसरी ओर, सेकेंड हाफ में गति‑तीव्रता में गिरावट आती है, जिससे कथा‑ट्रांसपोर्ट की निरंतरता बाधित होती है। इस मंदी को दुरुस्त करने के लिए अधिक इंटरैक्टिव नरेटिव एलिमेंट्स की आवश्यकता थी, जो यहाँ स्पष्ट नहीं है। फिर भी, नानी का अभिनय निरंतर सुसंगत रहता है, वह अपनी अभिव्यक्तियों में न्यूनतम स्तर की बायस नहीं दर्शाती। कुल मिलाकर, पहला हाफ एक सिनेमैटिक लाबिरिंथ है, जहाँ हर मोड़ पर नई संभावनाएँ उजागर होती हैं। इसलिए, दर्शकों को दो भाग की संतुलित समझ के लिए पहली हिस्से को पुनरावलोकन करना चाहिए।

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    Hari Krishnan H सितंबर 17, 2024 AT 15:40

    पहले हाफ की गहराई को समझते हुए, मैं भी मानता हूँ कि दूसरा हाफ थोड़ा घटिया लगा, पर नानी का प्रदर्शन फिर भी दर्शकों को जोड़ता रहता है।

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    umesh gurung सितंबर 22, 2024 AT 06:47

    सारिपोधा शनिवारम में संगीत चयन, विशेषकर जैक्स बिजॉय की पृष्ठभूमि ध्वनि, वास्तव में दर्शकों के भावनात्मक स्तर को उन्नत करने में सहायक है, क्योंकि यह दृश्य और ध्वनि को सुगमता से समन्वयित करता है, जिससे कथा में एक स्थिर प्रवाह बना रहता है, और नानी के अभिनय की तीव्रता को भी संतुलित किया जाता है, जिससे कुल मिलाकर फिल्म का कंटेंट अधिक आकर्षक बन जाता है।

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    Rucha Patel सितंबर 26, 2024 AT 21:54

    दूसरा हाफ बेतुका और ज़्यादा खींचा हुआ है।

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    Kajal Deokar अक्तूबर 1, 2024 AT 13:00

    समग्र रूप से, फिल्म की प्रथम कड़ी ने सांस्कृतिक परतों को उजागर किया, जबकि द्वितीय कड़ी ने अपेक्षाओं को मध्यवर्ती स्तर पर रखा; इस मिश्रण से दर्शक एक जटिल भावनात्मक यात्रा का अनुभव कर सकते हैं, जिसमें रंगीन दृश्यावली और सजीव संगीत का सम्मिलन है, जो समग्र रूप से एक यथार्थवादी परिदृश्य को साकार करता है।

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    Dr Chytra V Anand अक्तूबर 6, 2024 AT 04:07

    मैं इस बात से सहमत हूँ कि प्रथम भाग ने बौद्धिक उत्तेजना प्रदान की, परन्तु द्वितीय भाग में गति की कमी ने दर्शकों को निराश किया।

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    Disha Haloi अक्तूबर 10, 2024 AT 19:14

    देशभक्ति की भावना से भरपूर यह फिल्म हमारा सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करती है, परंतु निरर्थक बिचौलापन और धीमी गति का प्रयोग हमारे राष्ट्रीय आत्मविश्वास को कमजोर कर सकता है; इसलिए निर्माताओं को भविष्य में अधिक प्रगतिशील कथा संरचना अपनानी चाहिए, जिससे दर्शक अपनी पहचान के साथ गर्व भी महसूस करें।

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    Mariana Filgueira Risso अक्तूबर 15, 2024 AT 10:20

    निश्चित रूप से, रचनाकारों को कथा के प्रवाह को तेज़ करने के लिये अधिक सजीव संवादों और त्वरित मोड़ का प्रयोग करना चाहिए, जिससे दर्शकों का सहभागिता स्तर उच्च बना रहे।

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    Dinesh Kumar अक्तूबर 20, 2024 AT 01:27

    एक दार्शनिक दृष्टिकोण से देखें तो फिल्म का पहला अंश जीवन के तीव्र क्षणों का प्रतिबिंब है, जबकि दूसरा अंश स्थिरता और चिंतन को दर्शाता है; इस द्वैधता में संतुलन खोजने के लिये दर्शक को दोनों भागों को समान महत्व देना चाहिए।

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    tirumala raja sekhar adari अक्तूबर 24, 2024 AT 16:34

    इसे देख कर लग रहा है की फिल्म में बहुत सारा पांसिंग है, यानी टाइमिंग सही नहीं है, और एंण्डिंग भी कन्फ्यूजिंग है।

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    abhishek singh rana अक्तूबर 29, 2024 AT 07:40

    फिल्म की संगीत, अभिनेत्री नानी का अभिनय, और कहानी का पहला हिस्सा बहुत अच्छा है, पर दुसरा हिस्सा थोड़ा धीमा है।

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    Shashikiran B V नवंबर 2, 2024 AT 22:47

    संभवतः इस फिल्म में गुप्त एजेंसियों ने अपनी विचारधारा को बारीकी से बंधा है, इसलिए कहानी का दूसरा भाग वैसा नहीं दिखता जैसा होना चाहिए था।

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