अडानी समूह से जुड़े ऑफशोर फंड्स में SEBI प्रमुख माधबी बुच के हिस्सेदारी के हिन्डनबर्ग के दावे

अडानी समूह से जुड़े ऑफशोर फंड्स में SEBI प्रमुख माधबी बुच के हिस्सेदारी के हिन्डनबर्ग के दावे
मान्या झा अग॰ 12 0 टिप्पणि

हिन्डनबर्ग के दावे और आरोप

हिन्डनबर्ग रिसर्च ने एक बार फिर भारतीय बाजार की नियामक संस्था SEBI की प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इस बार उनके आरोप अडानी समूह से सीधे जुड़े हुए हैं। हिन्डनबर्ग का दावा है कि बुच दंपति के पास अडानी समूह से जुड़े ऑफशोर फंड्स में हिस्सेदारी है।

हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, माधबी बुच और उनके पति ने 5 जून 2015 को सिंगापुर स्थित IPE Plus Fund 1 में एक खाता खोला था। इस खाते में उसी जटिल वित्तीय संरचना का उपयोग किया गया था, जिसे गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी द्वारा उपयोग किया जाता था। हिन्डनबर्ग का मानना है कि SEBI की अडानी समूह पर कार्रवाई करने में हिचकिचाहट इनके संभावित वित्तीय संबंधों के कारण है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ और SEBI की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट ने SEBI की उन प्रवृत्तियों को नोट किया है जिसमें उन्होंने ऑफशोर फंड्स के धारकों की जाँच करने में असमर्थता दिखाई है। SEBI पर पहले भी अडानी समूह के खिलाफ सख्त कदम न उठाने के आरोप लगे हैं। यह सभी आरोप हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट में पुख्ता किए गए हैं, जिसमें उन्होंने काॅर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के रिकॉर्ड्स भी पेश किए हैं।

SEBI ने हिन्डनबर्ग की इन आरोपों का खंडन करते हुए यह स्पष्ट किया है कि उनके वित्तीय खुलासे पारदर्शी हैं। बुच परिवार ने भी इन आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहा है कि उनकी सम्पूर्ण वित्तीय जानकारी SEBI के पास कई सालों से उपलब्ध है।

Agora Advisory और उसकी भूमिका

Agora Advisory और उसकी भूमिका

हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि माधबी बुच और उनके पति की एक परामर्श कंपनी है, जिसका नाम Agora Advisory है। इसमें माधबी बुच की 99% हिस्सेदारी है। 2022 में इस कंपनी ने $261,000 का रेवेन्यू रिपोर्ट किया था, जो बुच की SEBI में घोषित सैलरी से चार गुणा ज्यादा है।

तकनीकी जाँच और हिन्डनबर्ग का मुकदमा

SEBI ने हिन्डनबर्ग को भारतीय बाजार नियमों के उल्लंघन के लिए एक शो-कॉज नोटिस जारी किया है। हिन्डनबर्ग और SEBI के बीच यह संघर्ष पहले से ही चल रहा है और इस नए मामले ने इसे और ज्यादा तूल दे दिया है।

निष्कर्ष

निष्कर्ष

यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह विवाद किस दिशा में जाता है और इसमें शामिल सभी पक्ष किस प्रकार से अपने तरीकों को प्रस्तुत करते हैं। SEBI पर लगे ये आरोप केवल संस्थागत पारदर्शिता को प्रभावित नहीं करते, बल्कि भारतीय वित्तीय बाजार की विश्वसनीयता को भी सवालों के कटघरे में खड़ा करते हैं।

इस खबर का सही अर्थ तभी स्पष्ट हो सकेगा जब पूरा सच सामने आएगा और नियामक निकाय और संबंधित पार्टियां अपने-अपने बयानों का समर्थन साक्ष्यों के माध्यम से कर पाएंगी।

यह विवाद भारतीय वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता एवं निष्पक्षता की मांग को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।

फिलहाल, हिन्डनबर्ग और SEBI के बीच यह कशमकश जारी है और इसके परिणामस्वरूप भारतीय बाजार की संरचना पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।

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