अडानी समूह से जुड़े ऑफशोर फंड्स में SEBI प्रमुख माधबी बुच के हिस्सेदारी के हिन्डनबर्ग के दावे

अडानी समूह से जुड़े ऑफशोर फंड्स में SEBI प्रमुख माधबी बुच के हिस्सेदारी के हिन्डनबर्ग के दावे
Anindita Verma अग॰ 12 8 टिप्पणि

हिन्डनबर्ग के दावे और आरोप

हिन्डनबर्ग रिसर्च ने एक बार फिर भारतीय बाजार की नियामक संस्था SEBI की प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इस बार उनके आरोप अडानी समूह से सीधे जुड़े हुए हैं। हिन्डनबर्ग का दावा है कि बुच दंपति के पास अडानी समूह से जुड़े ऑफशोर फंड्स में हिस्सेदारी है।

हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, माधबी बुच और उनके पति ने 5 जून 2015 को सिंगापुर स्थित IPE Plus Fund 1 में एक खाता खोला था। इस खाते में उसी जटिल वित्तीय संरचना का उपयोग किया गया था, जिसे गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी द्वारा उपयोग किया जाता था। हिन्डनबर्ग का मानना है कि SEBI की अडानी समूह पर कार्रवाई करने में हिचकिचाहट इनके संभावित वित्तीय संबंधों के कारण है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ और SEBI की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट ने SEBI की उन प्रवृत्तियों को नोट किया है जिसमें उन्होंने ऑफशोर फंड्स के धारकों की जाँच करने में असमर्थता दिखाई है। SEBI पर पहले भी अडानी समूह के खिलाफ सख्त कदम न उठाने के आरोप लगे हैं। यह सभी आरोप हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट में पुख्ता किए गए हैं, जिसमें उन्होंने काॅर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के रिकॉर्ड्स भी पेश किए हैं।

SEBI ने हिन्डनबर्ग की इन आरोपों का खंडन करते हुए यह स्पष्ट किया है कि उनके वित्तीय खुलासे पारदर्शी हैं। बुच परिवार ने भी इन आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहा है कि उनकी सम्पूर्ण वित्तीय जानकारी SEBI के पास कई सालों से उपलब्ध है।

Agora Advisory और उसकी भूमिका

Agora Advisory और उसकी भूमिका

हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि माधबी बुच और उनके पति की एक परामर्श कंपनी है, जिसका नाम Agora Advisory है। इसमें माधबी बुच की 99% हिस्सेदारी है। 2022 में इस कंपनी ने $261,000 का रेवेन्यू रिपोर्ट किया था, जो बुच की SEBI में घोषित सैलरी से चार गुणा ज्यादा है।

तकनीकी जाँच और हिन्डनबर्ग का मुकदमा

SEBI ने हिन्डनबर्ग को भारतीय बाजार नियमों के उल्लंघन के लिए एक शो-कॉज नोटिस जारी किया है। हिन्डनबर्ग और SEBI के बीच यह संघर्ष पहले से ही चल रहा है और इस नए मामले ने इसे और ज्यादा तूल दे दिया है।

निष्कर्ष

निष्कर्ष

यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह विवाद किस दिशा में जाता है और इसमें शामिल सभी पक्ष किस प्रकार से अपने तरीकों को प्रस्तुत करते हैं। SEBI पर लगे ये आरोप केवल संस्थागत पारदर्शिता को प्रभावित नहीं करते, बल्कि भारतीय वित्तीय बाजार की विश्वसनीयता को भी सवालों के कटघरे में खड़ा करते हैं।

इस खबर का सही अर्थ तभी स्पष्ट हो सकेगा जब पूरा सच सामने आएगा और नियामक निकाय और संबंधित पार्टियां अपने-अपने बयानों का समर्थन साक्ष्यों के माध्यम से कर पाएंगी।

यह विवाद भारतीय वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता एवं निष्पक्षता की मांग को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।

फिलहाल, हिन्डनबर्ग और SEBI के बीच यह कशमकश जारी है और इसके परिणामस्वरूप भारतीय बाजार की संरचना पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।

8 टिप्पणि
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    Rucha Patel अगस्त 12, 2024 AT 01:24

    हिन्दी में बजट गड़बड़ी का यह मामला नियामक प्रणाली में छिपे हुए हितों को उजागर करता है। यह स्पष्ट है कि कुछ शक्तिशाली लोग अपने फायदे के लिए नियमों को ढालते हैं। इस तरह की चालें बाजार में विश्वास को नाज़ुक कर देती हैं। अंततः जनता को ही इस झंझट का असर झेलना पड़ता है।

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    Kajal Deokar अगस्त 13, 2024 AT 01:00

    आदरणीय समुदाय वाचकों, इस जटिल वित्तीय परिदृश्य को समझना नितांत आवश्यक है। हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि पारदर्शिता की कमी से नियामक कार्यवाही में बाधा उत्पन्न हो सकती है। SEBI को इस मामले में अधिक सख्त कदम उठाने चाहिए, ताकि सभी हितधारक सुरक्षित महसूस करें। इस संदर्भ में, सभी पक्षों को सहयोगात्मक संवाद को अपनाना चाहिए। इस संघर्ष को शांतिपूर्ण समाधान की ओर ले जाना हमारे सामूहिक विकास के लिए लाभदायक होगा। आशा है कि भविष्य में ऐसी जाँचें अधिक स्पष्ट और निष्पक्ष रूप से संचालित होंगी।

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    Dr Chytra V Anand अगस्त 14, 2024 AT 00:36

    हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट पर हमारी टीम ने कई स्रोतों से तथ्यों की पुष्टि की है। हम यह मानते हैं कि सभी जानकारी को पारदर्शी तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए। इस प्रकार के विवाद में सहयोगी दृष्टिकोण अपनाना लाभकारी होगा।

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    Disha Haloi अगस्त 15, 2024 AT 00:13

    वित्तीय नियामक प्रणाली में गहराई से विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि राष्ट्रीय हितों को हमेशा सर्वोपरि रखना चाहिए।
    अगर नियामक अपने कर्तव्य से विमुख होते हैं, तो वह केवल विदेशी हितैषियों को लाभ देता है।
    हिंदुस्तान की समृद्धि और आर्थिक शक्ति को बचाने के लिए हमें सख्त कदम उठाने चाहिए।
    हिन्डनबर्ग जैसी विदेशी संस्थाएँ अक्सर अपने लाभ के लिए भारतीय बाजार में दखल देती हैं।
    इसलिए, SEBI को इन संस्थाओं की रिपोर्ट को तुच्छ नहीं समझना चाहिए।
    यदि हम अपनी वित्तीय प्रणाली को अस्थिर छोड़ देंगे, तो विदेशी पूँजी उसके ऊपर हावी हो जाएगी।
    आइए, हम इस मुद्दे को राष्ट्रीय गर्व के स्तर पर ले जाएँ।
    जितनी जल्दी हम कार्रवाई करेंगे, उतनी ही बेहतर भविष्य की नींव रखेंगे।
    अडानी समूह और अन्य बड़े कॉरपोरेट्स को भी देश की सेवा में अपने योगदान को स्पष्ट करना चाहिए।
    जाँच और जवाबदेही के बिना, कोई भी संस्थान प्रगति नहीं कर सकता।
    हिन्डनबर्ग की आरोपों को वैध ठहराना चाहिए, ताकि न्यायसंगत प्रक्रिया चल सके।
    न्याय और पारदर्शिता को प्राथमिकता देना ही इस संकट से बाहर निकलने की कुंजी है।
    हमें यह भी याद रखना चाहिए कि वित्तीय नियमन का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता है।
    इसलिए, हम सबको मिलकर इस मुद्दे पर राष्ट्रीय भावना को कायम रखते हुए समाधान खोजना चाहिए।
    अंततः, यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि भारत का वित्तीय ढांचा विश्व मंच पर सम्मानित हो।

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    Mariana Filgueira Risso अगस्त 15, 2024 AT 23:50

    हिन्डनबर्ग द्वारा प्रस्तुत तथ्यों को देखते हुए, हमें एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इस प्रकार की जटिल वित्तीय संरचनाओं की जाँच में विशेषज्ञता आवश्यक है। हमारे पास मौजूद रिकॉर्ड्स इस बात की पुष्टि करते हैं कि सभी लेन‑देन पारदर्शी रूप से दर्ज किए गए हैं। इसलिए, इस मसले को अनावश्यक रूप से उकसाने की बजाय तथ्यात्मक विश्लेषण पर ध्यान देना ज़रूरी है।

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    Dinesh Kumar अगस्त 16, 2024 AT 23:26

    हमें इस जटिल स्थिति में धैर्य रखना चाहिए और तथ्यों को एक‑एक कर के समझना चाहिए। सभी पक्षों को अपनी‑अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। आशा है कि जल्द ही स्पष्ट समाधान निकलेगा और वित्तीय प्रणाली में विश्वास पुनः स्थापित होगा।

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    Hari Krishnan H अगस्त 17, 2024 AT 23:03

    इसी प्रकार के मामलों में सबको मिलकर समाधान खोजना चाहिए।

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    umesh gurung अगस्त 18, 2024 AT 22:40

    जाँच के परिणाम, बहुत ही महत्वपूर्ण, और स्पष्ट रूप से निर्धारित किए जाने चाहिए, ताकि सभी हितधारक, निःशंक होकर आगे बढ़ सकें।
    वित्तीय नियम, कड़ी निगरानी के अधीन, यह सुनिश्चित करते हैं कि बाजार में पारदर्शिता बनी रहे।
    हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट, यदि सटीक साबित होती है, तो SEBI को त्वरित कार्रवाई करनी होगी।
    एक सुदृढ नियामक ढांचा, आर्थिक स्थिरता के लिए अनिवार्य है।
    आइए, हम इस प्रक्रिया को सहयोगी और निष्पक्ष बनाएं।

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