
बरसात से बर्बादी में डूबे किसान
उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में इस साल मानसून ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही और खेतों में पानी भर जाने से धान, गन्ना और सब्जी की फसलें पूरी तरह तबाह हो गई हैं। जिन किसानों ने उर्वरक, बीज और खेत की जुताई में भारी खर्चा किया, उन्हें अब हाथ मलना पड़ रहा है। अकेले पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में हजारों हेक्टेयर में लगी फसलें बर्बाद हो गई हैं। धान के खेत पानी में लंबे समय तक डूबे रहने के कारण पौधे सड़ने लगे हैं।
यह हालात ऐसे समय में सामने आए हैं जब पहले ही खाद और डीजल की महंगाई ने किसानों की लागत बढ़ा दी थी। आखिरकार, फसलों का नुकसान होने पर उन्हें न तो उचित दाम मिलता है और न ही कोई त्वरित राहत। कई जगहों से शिकायतें मिल रही हैं कि बीमा क्लेम की प्रक्रिया भी बहुत जटिल और धीमी है।

सरकारी इंतजाम और किसानों की उम्मीदें
सरकार ने खेतों का सर्वे शुरू करवाया है ताकि नुकसान का आकलन किया जा सके, लेकिन अब तक किसानों के हाथ सिर्फ आश्वासन ही लगे हैं। राहत राशि कब और कितनी मिलेगी, इस पर भी सवाल उठ रहे हैं। जिन किसानों के पास फसल बीमा है, उन्हें भी मुआवजे की राह लंबी दिख रही है।
इस स्थिति में किसान परेशान हैं कि आगे कैसे गुजारा चलेगा। उनका कहना है कि यदि समय रहते राहत नहीं मिली तो गांवों में कर्ज और बेरोजगारी की समस्या बढ़ सकती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि लगातार बदलते मौसम में फसल बीमा और सरकारी मुआवजा योजना को ज्यादा सरल और तेज करना जरूरी है।
राज्य के कई गांवों में अभी भी पानी निकलने का इंतजार हो रहा है। खेत सूखेंगे तो ही अगली फसल की तैयारी हो पाएगी। इस बार की बारिश ने फिर साफ कर दिया है कि किसानों की मुश्किलें जितनी दिखती हैं, हकीकत उससे कई गुना ज्यादा गहरी हैं।
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