राहुल गांधी की आपत्ति: 'स्पीकर ओम बिरला का प्रधानमंत्री मोदी के सामने झुकना'

राहुल गांधी की आपत्ति: 'स्पीकर ओम बिरला का प्रधानमंत्री मोदी के सामने झुकना'
Anindita Verma जुल॰ 2 20 टिप्पणि

लोकसभा में राहुल गांधी की आपत्ति

लोकसभा में एक महत्वपूर्ण सत्र के दौरान, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने स्पीकर ओम बिरला के एक विशेष हावभाव पर सवाल उठाए। यह घटना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फिर से चुने जाने के बाद की है, जब बिरला ने मोदी के सामने झुककर उनका स्वागत किया। गांधी ने कहा कि जब उन्होंने बिरला से हाथ मिलाया तो बिरला सीधे खड़े रहे, लेकिन जब मोदी ने हाथ मिलाया तो उन्होंने झुककर उनका अभिवादन किया। इसे लेकर गांधी ने कहा कि स्पीकर का पद भारतीय लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और किसी भी सदस्य से बड़ा होता है।

स्पीकर ओम बिरला की सफाई

स्पीकर ओम बिरला ने गांधी की आपत्ति का जवाब देते हुए कहा कि यह उनके व्यक्तिगत मूल्यों और आदर्शों का हिस्सा है कि वे बड़ों का सम्मान करते हैं और समान के साथ समान व्यवहार करते हैं। बिरला ने कहा कि यह उनके लिए एक सांस्कृतिक मुद्दा है और इसमें कुछ गलत नहीं है।

लोकसभा में गरम माहौल

लोकसभा में गरम माहौल

राहुल गांधी और स्पीकर ओम बिरला के बीच हुई इस वार्तालाप ने लोकसभा में एक गरम माहौल पैदा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के अन्य सदस्यों ने गांधी पर हिन्दू भावनाओं का अपमान करने का आरोप लगाया। यह आरोप इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीधे भारतीय जनता पार्टी की धार्मिक और सांस्कृतिक विचारधारा से जुड़ा हुआ है।

गृह मंत्री अमित शाह की प्रतिक्रिया

इस घटनाक्रम पर गृह मंत्री अमित शाह ने तीखी प्रतिक्रिया दी और गांधी के बयान को असंसदीय करार दिया। उन्होंने कहा कि गांधी ने केवल स्पीकर के पद का ही नहीं बल्कि समूचे लोकतांत्रिक प्रणालियों का अपमान किया है। शाह ने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी हमेशा से ही तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करती आई है और उनका यही आचरण उन्हें बार-बार हाशिये पर ले जा रहा है।

लोकसभा कार्यवाही में प्रदर्शित आचार

लोकसभा कार्यवाही में प्रदर्शित आचार

यह वाकया लोकतंत्र में लोकसभा की कार्यवाही के तरीके और उसमें प्रदर्शित आचार पर भी सवाल उठाता है। स्पीकर का पद अपनी निष्पक्षता और न्यायप्रियता के लिए जाना जाता है। ऐसे में कोई भी व्यक्तिगत हावभाव या क्रिया-प्रतिक्रिया जनता के मन में सवाल पैदा कर सकती है। यह मामला देश के नेताओं के लिए एक सबक होना चाहिए कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।

आगे की संभावना

यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले का आगे क्या परिणाम निकलता है। क्या राहुल गांधी की यह आपत्ति लोकसभा के अंदर आगे किसी व्यापक बहस का विषय बनेगी या फिर यह केवल राजनीतिक बयानबाजी तक ही सीमित रहेगी? साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण होगा कि स्पीकर ओम बिरला इस घटना के बाद कैसे आगे की कार्यवाही करते हैं और क्या उनके इस हावभाव से उनकी छवि पर कोई असर पड़ता है या नहीं।

20 टिप्पणि
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    Sharavana Raghavan जुलाई 2, 2024 AT 22:09

    स्पीकर का पद लोकतांत्रिक संतुलन का अभिन्न हिस्सा है, इसलिए किसी भी सदस्य से बड़ा नहीं माना जाता। लेकिन प्रधानमंत्री के सामने झुकना यह संकेत देता है कि औपचारिक प्रतिष्ठा में अब भी व्यक्तिगत पक्षपात चल रहा है।

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    Nikhil Shrivastava जुलाई 4, 2024 AT 15:49

    देखो, हमारे सांस्कृतिक परम्परा में बड़ों को सम्मान देना स्वाभाविक है, लेकिन संसद की पवित्रता को उस सम्मान के साथ मिलाकर देखना चाहिए। यदि हम हर छोटी-छोटी हरकत को राजनीति का हथियार बना दें, तो लोकतंत्र का सार खो जाएगा।

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    Aman Kulhara जुलाई 6, 2024 AT 09:29

    लोकसभा के इतिहास में कई बार सदस्यों के शारीरिक हावभाव ने सार्वजनिक बहस को आकार दिया है। स्पीकर ओम बिरला का यह झुकाव पहले भी देखा गया था, लेकिन इस बार बड़ी राजनीतिक पृष्ठभूमि के कारण चर्चा में बढ़ गया। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और स्पीकर के बीच स्पष्ट शिष्टाचार नियम हैं, जो संस्थाओं की स्वायत्तता को बचाते हैं। जब किसी भी उच्च पदस्थ व्यक्तियों को व्यक्तिगत आदर दिखाने के बहाने संस्थागत सम्मान में बदलाव किया जाता है, तो वह लोकतांत्रिक संतुलन को खतरे में डालता है। यह बात स्पष्ट है कि बिरला जी का व्यक्तिगत मूल्य बड़ों के प्रति सम्मान रखना है, परन्तु यह सम्मान संस्थागत भूमिका से अलग होना चाहिए। एक समानता के सिद्धांत पर आधारित लोकतंत्र में सभी को समान स्तर पर देखा जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी पद पर हो। स्पीकर का पद सदस्यों के बीच निष्पक्षता बनाए रखने के लिए है, न कि व्यक्तिगत पसंद-नापसंद दिखाने के लिए। यदि हम यह स्वीकार कर लें कि नेता के सामने झुकना संस्थागत सम्मान का हिस्सा है, तो भविष्य में यह व्यवहार साधारण हो सकता है। ऐसी स्थिति में संसद में विपक्षी आवाज़ें दब सकती हैं और बहस का स्तर घट सकता है। उसके अलावा, इस तरह के हावभाव से जनता में भरोसा कम हो सकता है कि लोकतंत्र निरपेक्ष है। एक और पहलू यह है कि मीडिया इस मुद्दे को कैसे प्रस्तुत करती है, अक्सर भावनात्मक रूप से खीँचा जाता है, जिससे वास्तविक मुद्दे की जटिलता खो जाती है। साथ ही, विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच यह मुद्दा टकराव का नया कारण बन सकता है, जो पेशेवर बहस को बाधित करता है। इसलिए, हमें इस घटना को सिर्फ एक व्यक्तिगत पसंद नहीं, बल्कि संस्थागत नियमों के उल्लंघन के रूप में देखना चाहिए। भविष्य में यदि ऐसे प्रचलन को नियंत्रित नहीं किया गया, तो संसद की गरिमा और कार्यशीलता दोनों को खतरा होगा। सभी नेताओं को चाहिए कि वे अपने व्यक्तिगत मान्यताओं को अपने आधिकारिक कर्तव्य से अलग रखें। संक्षेप में, इस झुकाव को लोकतांत्रिक मूल्यों की परखा का एक परीक्षण माना जा सकता है, और हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

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    ankur Singh जुलाई 8, 2024 AT 03:09

    स्पीकर का झुकाव सत्ता के खेल का हिस्सा ही है।

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    Aditya Kulshrestha जुलाई 9, 2024 AT 20:49

    चलो, जब बड़ों की बात आती है तो हम अक्सर हीड़ नहीं बनाते, पर यह दिखता है कि झुकाव को भी राजनीति के रंग में रंगा जा रहा है :)

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    Sumit Raj Patni जुलाई 11, 2024 AT 14:29

    भाई, ये सब एडवांस्ड राजनीति की बकरी-घाटा है, असली मुद्दा तो यह है कि हमारी संसद में सम्मान का क्या मूल्य है।

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    Shalini Bharwaj जुलाई 13, 2024 AT 08:09

    मैं समझती हूँ कि कई लोगों को इस तरह की हरकत से चोट लगती है, पर हमें ठंडे दिमाग से देखना चाहिए कि यह किस पर असर डालेगा।

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    Chhaya Pal जुलाई 15, 2024 AT 01:49

    हम सभी भारतीयों ने अपने स्वतंत्रता संग्राम में सम्मान और परस्पर समझ को मुख्य रूप से अपनाया है, और यही आदर्श आज के लोकतांत्रिक मंच में भी जीवित होना चाहिए।
    जब कोई व्यक्ति, चाहे वह स्पीकर हो या प्रधानमंत्री, सार्वजनिक मंच पर शारीरिक रूप से झुकता है, तो यह केवल शिष्टाचार नहीं बल्कि सामाजिक शक्ति के संकेत के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।
    ऐसी स्थितियों में हमें यह सवाल उठाना चाहिए कि क्या यह व्यक्तिगत आदर को संस्थागत शक्ति से मिश्रित कर रहा है, और क्या इससे लोकतंत्र की निष्पक्षता पर असर पड़ता है।
    साथ ही, यह देखना महत्वपूर्ण है कि मीडिया इस घटना को कैसे फ्रेम कर रही है, क्योंकि अक्सर भावनात्मक ढाल में समाचार को प्रस्तुत किया जाता है।
    इस बात का भी ध्यान रखें कि दर्शकों में इस प्रकार की हरकत को सामान्यीकृत किया जा सकता है, जो भविष्य में समान अभिव्यक्तियों को बढ़ावा दे सकता है।
    अन्त में, हमें यह पहचानना चाहिए कि लोकतंत्र में सभी के पास समान अधिकार हैं, और कोई भी पदस्थ व्यक्ति व्यक्तिगत सम्मान के नाम पर अपने आधिकारिक पद के साथ मिश्रण नहीं कर सकता।

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    Naveen Joshi जुलाई 16, 2024 AT 19:29

    मिलजुल कर अगर हम इस मुद्दे को समझें, तो देखेंगे कि वास्तव में क्या असर होता है और कैसे हम इसे सुधार सकते हैं।

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    Gaurav Bhujade जुलाई 18, 2024 AT 13:09

    सही कहा, भावनाओं को समझते हुए हमें तथ्य पर भी प्रकाश डालना चाहिए, ताकि जबरदस्त बहस के बजाय रचनात्मक चर्चा बन सके।

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    Chandrajyoti Singh जुलाई 20, 2024 AT 06:49

    सभी पक्षों को यह ध्यान देना चाहिए कि लोकतांत्रिक संस्थानों की गरिमा को बनाए रखने के लिए व्यक्तिगत अभिवादन और आधिकारिक कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से अलग किया जाना आवश्यक है।

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    Riya Patil जुलाई 22, 2024 AT 00:29

    यह घटना हमारे राष्ट्रीय आत्मविश्वास को चुनौती देती प्रतीत होती है, क्योंकि हर छोटा-सा संकेत बड़ी तस्वीर को पुनः लिख देता है।

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    naveen krishna जुलाई 23, 2024 AT 18:09

    आइए, इस मुद्दे पर खुले दिल से चर्चा करें, न कि टकराव के उकसाने पर 😊।

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    Disha Haloi जुलाई 25, 2024 AT 11:49

    देश के सम्मान को लेकर ऐसी छोटी-छोटी बातों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना ही बेमतलब की राजनीति है, हमें सच्चे राष्ट्रीय हित पर ध्यान देना चाहिए।

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    Mariana Filgueira Risso जुलाई 27, 2024 AT 05:29

    अधिकांश विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि संसद के भीतर शिष्टाचार को निर्धारित करने वाले नियम स्पष्ट होने चाहिए, जिससे भविष्य में समान स्थितियों में अस्पष्टता न रहे।

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    Dinesh Kumar जुलाई 28, 2024 AT 23:09

    आशा है कि इस विवाद से हमें सीख मिलेगी और भविष्य में अधिक पारदर्शी व्यवहार को अपनाया जाएगा, जिससे लोकतंत्र की शक्ति और भी प्रबल होगी।

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    Hari Krishnan H जुलाई 30, 2024 AT 16:49

    भाई लोग, राजनीति में अक्सर इस तरह के छोटे-छोटे इशारे ही बड़े मुद्दे बन जाते हैं, देखते रहो।

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    umesh gurung अगस्त 1, 2024 AT 10:29

    संस्थागत भूमिका और निजी विश्वास के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है; नहीं तो सार्वजनिक भरोसा कमजोर पड़ सकता है।

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    sunil kumar अगस्त 3, 2024 AT 04:09

    स्पीकर के वैचारिक प्रदर्शन को हम 'परफॉर्मेटिव एटिट्यूड' के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं, जो सत्रीय डायनैमिक्स को पुनःपरिभाषित करता है।

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    prakash purohit अगस्त 4, 2024 AT 21:49

    जैसे ही इस झुकाव की चर्चा बढ़ती है, बैकग्राउंड में कई छिपे हुए एजेंडा काम कर रहे हैं, जिससे जनता को निरुपयोगी जानकारी मिलती है।

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