मलयालम फिल्म संपादक निशाद यूसुफ की मृत्यु: एक करियर का शोकजनक अंत

मलयालम फिल्म संपादक निशाद यूसुफ की मृत्यु: एक करियर का शोकजनक अंत
मान्या झा अक्तू॰ 30 0 टिप्पणि

मलयालम फिल्म संपादक निशाद यूसुफ की आकस्मिक मृत्यु ने पूरे फिल्म उद्योग को स्तब्ध कर दिया है। कोच्चि के पनामपिल्ली नगर में उनके अपार्टमेंट में उन्हें मृत पाया गया। वह उस समय के एक अग्रणी संपादक माने जाते थे जिन्होंने कई प्रसिद्ध मलयालम फिल्मों को एक नया आयाम दिया। 43 वर्षीय निशाद का फिल्मी करियर बहुत ही उतार-चढ़ाव भरा था, लेकिन उन्होंने अपनी बेहतरीन संपादन कला से सभी को प्रभावित किया।

उनकी हालिया परियोजनाओं में से एक थी बड़े बजट की तमिल फैंटसी एक्शन-ड्रामा *कंगुवा*, जिसमें सुरिया जैसे शीर्ष अभिनेता काम कर रहे थे। यह फिल्म अभी पोस्ट-प्रोडक्शन के दौर से गुजर रही थी और इसका रिलीज़ 14 नवम्बर को होना तय था। इसके साथ ही उनकी अन्य आगामी परियोजनाएं जैसे *बाज़ूका* जिसमें ममूट्टी मुख्य भूमिका में हैं, और *अलप्पुझा जिमखाना* भी थी। यह सभी परियोजनाएं उनके संपादन कौशल की विविधता को दर्शाती हैं।

पुलिस इस मामले की जांच कर रही है और प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार यह आत्महत्या का मामला हो सकता है, हालांकि अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। यह संदेश सिनेमाघरों में गूंज रहा है कि ऐसा होनहार व्यक्ति, जिसने पिछले वर्ष *थल्लुमाला* के लिए केरल राज्य फिल्म पुरस्कार जीता था, अब हमारे बीच नहीं है। फिल्म कर्मचारियों के महासंघ (FEFKA) के निदेशक संघ ने उनके निधन की पुष्टि की और उनके योगदान को याद करते हुए शोक व्यक्त किया।

मलयालम फिल्म जगत और उनके परिवार के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है। निशाद यूसुफ वह संपादक थे जिन्होंने न केवल टेक्नोलॉजी दक्षता में महारत हासिल की, बल्कि उनकी कहानियों के सम्पादन ने उन्हें दर्शकों के हृदय में विशिष्ट स्थान दिलाया। उनका काम, जैसे *उंडा*, *वन* और *सऊदी वेल्लक्का*, सभी फिल्म प्रेमियों के लिए अमूल्य धरोहर बन चुका है।

निशाद की मृत्यु ने उनके परिवार के साथ-साथ उनके प्रशंसकों, सहकर्मियों और उन अभिनेता-निर्माताओं को भी व्यक्तिगत पीड़ा में डाल दिया है, जिन्होंने उनके साथ काम किया था। यह महत्वपूर्ण होता है कि फिल्म उद्योग इस प्रभावशाली शख्सियत की मृत्यु के पीछे के तथ्यों की पूरी तरह से जाँच करे और कोई भी गलतफहमी खत्म हो। उनके जाने के बाद हर कोई यही सवाल कर रहा है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने उन्हें इस विध्वंशक निर्णय की ओर धकेल दिया।

निशाद यूसुफ की आत्मा को शांति मिलने की कामना के साथ, सिनेमा जगत की उम्मीद है कि उनके अधूरे सपनों को उनके साथी और सहकर्मी साकार करेंगे और उनकी विरासत को जीवित रखेंगे। निशाद जी की याद में हम सिर्फ एक अद्वितीय संपादक को नहीं, बल्कि एक उल्लेखनीय कलाप्रेमी को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। उनका काम और उनकी सोच हमेशा फिल्म निर्माताओं को प्रेरित करती रहेगी।

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