लखीमपुर दशहरा मेले में दुकान मालिकों का विरोध: शुल्क में कटौती व सेट‑अप अवधि में बढ़ोतरी की मांग

लखीमपुर दशहरा मेले में दुकान मालिकों का विरोध: शुल्क में कटौती व सेट‑अप अवधि में बढ़ोतरी की मांग
Anindita Verma सित॰ 23 4 टिप्पणि

विरोध की पृष्ठभूमि

लखीमपुर में दशहरा का मेले का माहौल हमेशा से स्थानीय संस्कृति और व्यापार का केंद्र रहा है। इस साल, नगरपालिका द्वारा लागू किए गए किराया और अतिरिक्त शुल्क को लेकर दुकान मालिकों ने सड़कों में आयुध हटाकर, अपने व्यापारिक कर्तव्य बंद कर, एक सिट‑इन प्रोटेस्ट किया। प्रमुख मांग में दो बिंदु उभर कर सामने आए: पहली, किराए की दर को घटाना और किसी भी नई अतिरिक्त फीस को माफ़ करना; दूसरी, मेले के सेट‑अप की अनुमति को लखीमपुर दशहरा मेला की अवधि के अंत तक, यानी 15 नवंबर तक बढ़ाना।

स्थानीय सामाजिक संगठनों ने बताया कि इस साल केवल 25‑30 ही दुकान मालिकों ने आधिकारिक रसीद लेकर स्टॉल लगाई है, जबकि पिछले वर्षों में औसतन 300‑400 विक्रेता भाग लेते थे। यह असमानता न केवल व्यापारियों के लिए आय का प्रश्न उठाती है, बल्कि मेले के दर्शकों के लिए भी विविधता और रंगीनता का अभाव पैदा कर रही है।

शहर प्रशासन की प्रतिक्रिया और संभावित असर

नगरपालिका अभी तक इन मांगों पर सार्वजनिक तौर पर कोई उत्तर नहीं दे पाई है। कुछ स्थानीय राजनेता इस मुद्दे को आर्थिक अस्थिरता के रूप में देख रहे हैं और बोले हैं कि अगर दुकान मालिकों की भागीदारी कम रही तो मेले की समग्र आकर्षण शक्ति घट जाएगी। मेले की कमी के कारण स्थानीय पर्यटन, होटल उद्योग और आसपास के रेस्टोरेंटों की आय पर भी असर पड़ सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह विवाद लंबे समय तक बना रहता है, तो लखीमपुर की दशहरा परेड, सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और हस्तशिल्पों की बिक्री में गिरावट देखी जा सकती है। साथ ही, यह स्थिति छोटे व्यवसायियों को बड़े शहरों में अपने व्यापार को ले जाने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे स्थानीय रोजगार परोक्ष रूप से घट सकता है।

  • वर्तमान में केवल 25‑30 रसीदधारक विक्रेता
  • औसत 300‑400 विक्रेता का निरपेक्ष अंतर
  • मुख्य मांग: किराया घटाना, अतिरिक्त शुल्क माफ़ी, 15 नवंबर तक सेट‑अप अनुमति
  • नगरपालिका की अभी तक कोई स्पष्ट जवाबी कार्रवाई नहीं

जैसे ही मेले का मौसम करीब आता है, दोनों पक्षों के बीच संवाद की जरूरत स्पष्ट होती जा रही है। यदि जल्दी समाधान नहीं निकला, तो लखीमपुर के दशहरा मेले की परंपरा पर गंभीर सवाल उठ सकते हैं।

4 टिप्पणि
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    Manish kumar सितंबर 23, 2025 AT 02:16

    मेले की सेट‑अप अवधि बढ़ाने की मांग वाजिब है। छोटे वेंडरों को अपने स्टॉल तैयार करने का पर्याप्त समय चाहिए। किराए में कटौती से आर्थिक दबाव कम होगा। उम्मीद है प्रशासन जल्दी समाधान निकालेगा।

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    Divya Modi सितंबर 23, 2025 AT 07:00

    सरकारी दर घटाने से छोटे व्यापारियों को राहत मिलेगी 😊

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    ashish das अक्तूबर 5, 2025 AT 10:40

    लखीमपुर दशहरा मेले का आर्थिक ताना‑बाना स्थानीय विक्रेताओं पर अत्यधिक निर्भर है।
    वर्तमान में केवल 25‑30 रसीदधारक विक्रेता ही भाग ले रहे हैं, जो पिछले वर्षों की विशाल संख्या से बहुत घटा है।
    यह अंतर न केवल आय में कमी लाता है, बल्कि सांस्कृतिक विविधता और दर्शकों के अनुभव को भी प्रभावित करता है।
    किराया व अतिरिक्त शुल्क में कटौती की मांग मूलतः स्थायी व्यावसायिक मॉडल बनाने के लिये आवश्यक है।
    सेट‑अप अवधि को 15 नवंबर तक बढ़ाने से नयी स्टॉल तैयार करने में समय की कमी नहीं रहेगी।
    प्रशासनिक प्रक्रिया में लचीलापन दिखाना स्थानीय आर्थिक स्थिरता को सुदृढ़ करेगा।
    यदि इस समय पर समझौता नहीं हुआ, तो छोटे व्यवसायियों को बड़े शहरों की ओर पलायन करना पड़ेगा।
    से इससे लखीमपुर की रोजगार बाजार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
    साथ ही मेले की आकर्षण शक्ति घटकर पर्यटन, होटलों और रेस्तरां की आय पर भी गिरावट आएगी।
    विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी दी है कि निरंतर विवाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों के स्तर को नीचे ले जा सकता है।
    इसलिए सभी पक्षों को संवाद के रास्ते खोलना अनिवार्य है।
    नगरपालिका को तुरंत एक सम्मिलन मंच बनाना चाहिए जहाँ विक्रेताओं की सुनवाई की जा सके।
    इस मंच के माध्यम से पारदर्शी निर्णय लेने की प्रक्रिया स्थापित की जा सकती है।
    अंत में, आर्थिक लाभ के साथ सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिये समानता पर आधारित नीति आवश्यक है।
    आशा है कि निकट भविष्य में एक संतुलित समाधान निकलेगा जो सभी हितधारकों को संतुष्ट करे।

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    vishal jaiswal अक्तूबर 9, 2025 AT 11:53

    सेट‑अप अवधि का विस्तार वास्तव में विक्रेताओं को नियोजित समय देने में मदद करेगा। इससे स्टॉल की गुणवत्ता और डिज़ाइन में सुधार होगा। साथ ही अतिरिक्त शुल्क में कमी से निवेश की इच्छा बढ़ेगी। प्रशासन को इन पहलुओं को ध्यान में रखकर नीति बनानी चाहिए। कुल मिलाकर यह कदम मेले के समग्र आकर्षण को बढ़ा सकता है।

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