
विरोध की पृष्ठभूमि
लखीमपुर में दशहरा का मेले का माहौल हमेशा से स्थानीय संस्कृति और व्यापार का केंद्र रहा है। इस साल, नगरपालिका द्वारा लागू किए गए किराया और अतिरिक्त शुल्क को लेकर दुकान मालिकों ने सड़कों में आयुध हटाकर, अपने व्यापारिक कर्तव्य बंद कर, एक सिट‑इन प्रोटेस्ट किया। प्रमुख मांग में दो बिंदु उभर कर सामने आए: पहली, किराए की दर को घटाना और किसी भी नई अतिरिक्त फीस को माफ़ करना; दूसरी, मेले के सेट‑अप की अनुमति को लखीमपुर दशहरा मेला की अवधि के अंत तक, यानी 15 नवंबर तक बढ़ाना।
स्थानीय सामाजिक संगठनों ने बताया कि इस साल केवल 25‑30 ही दुकान मालिकों ने आधिकारिक रसीद लेकर स्टॉल लगाई है, जबकि पिछले वर्षों में औसतन 300‑400 विक्रेता भाग लेते थे। यह असमानता न केवल व्यापारियों के लिए आय का प्रश्न उठाती है, बल्कि मेले के दर्शकों के लिए भी विविधता और रंगीनता का अभाव पैदा कर रही है।
शहर प्रशासन की प्रतिक्रिया और संभावित असर
नगरपालिका अभी तक इन मांगों पर सार्वजनिक तौर पर कोई उत्तर नहीं दे पाई है। कुछ स्थानीय राजनेता इस मुद्दे को आर्थिक अस्थिरता के रूप में देख रहे हैं और बोले हैं कि अगर दुकान मालिकों की भागीदारी कम रही तो मेले की समग्र आकर्षण शक्ति घट जाएगी। मेले की कमी के कारण स्थानीय पर्यटन, होटल उद्योग और आसपास के रेस्टोरेंटों की आय पर भी असर पड़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह विवाद लंबे समय तक बना रहता है, तो लखीमपुर की दशहरा परेड, सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और हस्तशिल्पों की बिक्री में गिरावट देखी जा सकती है। साथ ही, यह स्थिति छोटे व्यवसायियों को बड़े शहरों में अपने व्यापार को ले जाने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे स्थानीय रोजगार परोक्ष रूप से घट सकता है।
- वर्तमान में केवल 25‑30 रसीदधारक विक्रेता
- औसत 300‑400 विक्रेता का निरपेक्ष अंतर
- मुख्य मांग: किराया घटाना, अतिरिक्त शुल्क माफ़ी, 15 नवंबर तक सेट‑अप अनुमति
- नगरपालिका की अभी तक कोई स्पष्ट जवाबी कार्रवाई नहीं
जैसे ही मेले का मौसम करीब आता है, दोनों पक्षों के बीच संवाद की जरूरत स्पष्ट होती जा रही है। यदि जल्दी समाधान नहीं निकला, तो लखीमपुर के दशहरा मेले की परंपरा पर गंभीर सवाल उठ सकते हैं।
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