कर्नाटक सरकार ने हाल ही में आईटी सेक्टर में काम के घंटे बढ़ाने का विचार पेश किया है। इस प्रस्ताव के अनुसार, आईटी कर्मचारियों के कार्य समय को वर्तमान 10 घंटों से बढ़ाकर 14 घंटे किया जा सकता है, जिसमें ओवरटाइम भी शामिल होगा। यह कदम राज्य में सरकार द्वारा नौकरी आरक्षण नीति के बाद उठाया गया है, जिसमें स्थानीय लोगों के लिए पद आरक्षित करने की बात की गई थी।
इस प्रस्ताव के सामने आने के बाद आईटी/आईटीईएस कर्मचारी संघ (Kitu) ने इस पर अपनी गंभीर चिंताएँ व्यक्त की हैं। उन्होंने कहा है कि इस बदलाव से कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। काम के घंटे बढ़ने से वर्तमान तीन-शिफ्ट प्रणाली के बजाय दो-शिफ्ट प्रणाली लागू की जा सकती है, जिससे कर्मचारियों का एक तिहाई हिस्सा काम से बाहर हो सकता है।
कर्नाटक राज्य के श्रम मंत्री संतोष लाड ने भी इस प्रस्तावित संशोधन पर अपनी आपत्ति जताई है। उनका मानना है कि इससे न केवल कर्मचारियों पर अधिक दबाव पड़ेगा, बल्कि राज्य की तकनीकी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मकता भी घट सकती है।
प्रस्तावित बदलावों पर नासकॉम की प्रतिक्रिया
इंडस्ट्री एसोसिएशन नासकॉम ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखी है। उनका कहना है कि 48 घंटे की कार्य सप्ताह की सीमा बरकरार रखनी चाहिए, लेकिन इस सीमा के भीतर लचीलापन दिया जाना चाहिए। नासकॉम का मानना है कि कार्य समय को बढ़ाने की बजाय, कंपनियों को कर्मचारियों के कार्य-बalance पर ध्यान देना चाहिए, ताकि वे अधिक उत्पादक बन सकें।
आर्थिक प्रभाव और स्थानीय रोजगार पर बहस
इस कदम ने कर्नाटक में व्यापक बहस को जन्म दिया है। एक तरफ स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देने वाली नीति से आर्थिक विकास की उम्मीद की जा रही है, वहीं दूसरी तरफ तकनीकी क्षेत्र में राज्य की प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखने की चुनौती है। नौकरी आरक्षण नीति और कार्य समय बढ़ाने का यह प्रस्ताव उद्योग के भीतर असंतुलन पैदा कर सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के उपायों से स्थानीय कर्मचारियों को नौकरी मिलने की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं, लेकिन दूसरी तरफ आईटी सेक्टर से जुड़े पेशेवरों को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। लंबा कार्य समय न केवल मानसिक स्वास्थ्य पर दबाव डालेगा, बल्कि यह भी संभव है कि इससे कर्मचारियों की उत्पादकता कम हो जाए।
आईटी कर्मचारियों की चिंताएँ
आईटी कर्मचारी इस प्रस्ताव को लेकर अत्यधिक चिंतित हैं। उनकी प्रमुख समस्याएँ लंबी कार्य अवधि, काम का अधिक दबाव और मानसिक संतुलन बनाए रखने की चुनौतियाँ हैं। कई कर्मचारी यह मानते हैं कि अधिक काम के घंटे और कम आराम का समय उनकी कार्य क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
आईटी/आईटीईएस कर्मचारी संघ (Kitu) ने इस मुद्दे पर राज्य सरकार से अपील की है कि वे कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस प्रस्ताव को लागू न करें। संघ का कहना है कि इस तरह के बदलाव से न केवल कर्मचारियों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा, बल्कि उनकी काम के प्रति प्रतिबद्धता भी कमजोर हो जाएगी।
सरकार का रुख
कर्नाटक सरकार का कहना है कि इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य राज्य में रोजगार के अवसरों को बढ़ाना है। उनकी नजर में नौकरी आरक्षण नीति और कार्य समय बढ़ाना राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत करेगा। उनका यह भी मानना है कि इससे राज्य में स्थानीय युवाओं को अधिक मौके मिलेंगे और आईटी सेक्टर में उनकी भागीदारी बढ़ेगी।
हालांकि, सरकार को कर्मचारियों की चिंताओं को भी समझने की जरूरत है। लंबी कार्य अवधि समाजिक और व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित कर सकती है, जिसका दूरगामी प्रभाव हो सकता है।
भावी दिशा
इस मुद्दे पर राज्य सरकार और इंडस्ट्री के बीच बातचीत जारी है। दोनों पक्ष एक दूसरे की चिंताओं और सुझावों को ध्यान में रखते हुए एक सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रहे हैं। देखना होगा कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर क्या नतीजा निकलता है।
कुल मिलाकर कर्नाटक सरकार का यह कदम राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है। लेकिन इसका प्रभाव कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और उनकी उत्पादकता पर भी पड़ेगा, जिसे ध्यान में रखते हुए ही सरकार को अंतिम निर्णय लेना चाहिए।
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