हर्मनप्रीत कौर और फातिमा सना ने विश्व कप में हैंडशेक से इनकार

हर्मनप्रीत कौर और फातिमा सना ने विश्व कप में हैंडशेक से इनकार
Anindita Verma अक्तू॰ 5 11 टिप्पणि

जब हर्मनप्रीत कौर, भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान और फातिमा सना, पाकिस्तानी महिला क्रिकेट कप्तान ने 5 अक्टूबर 2025 को कोलंबो के आर प्रीमदास स्टेडियम में टॉस समारोह के दौरान हैंडशेक से इंकार कर दिया, तो यह घटना दोनों देशों के बीच चल रहे कूटनीतिक तनाव का नया अध्याय बन गई।

यह घटना ICC महिला विश्व कप 2025कोलंबो, श्रीलंका के एक समूह चरण मैच में हुई, जहाँ भारत ने 247 रन बनाकर 88 रनों से जीत हासिल की।

पृष्ठभूमि और इतिहास

भारत‑पाकिस्तान क्रिकेट विवाद की जड़ें 2000 के दशक तक पहुंचती हैं, लेकिन वास्तव में ज्वार‑भाटा 2025 के एशिया कप के बाद तेज़ हो गया। उस टूर्नामेंट में भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव की टीम ने पाकिस्तान के खिलाफ टॉस के बाद हैंडशेक नहीं किया, जिससे दोनों पक्षों के बीच अत्यधिक बहस छिड़ गई। इस पर पाकिस्तान के कप्तान सलमान अलि अग्हा ने पोस्ट‑मैच इंटरव्यू से मना कर दिया, और PCB ने आधिकारिक तौर पर अनड्रे पायक्रॉफ की टिप्पणी‑बोर्ड से हटाने की मांग की, जिसके बाद ICC ने PCB को अनुशासनात्मक चेतावनी जारी की।

मैच का प्रसंग और टॉस विवाद

5 अक्टूबर की शाम को स्टेडियम में लगभग 12,000 दर्शक और लाखों दर्शक टीवी स्क्रीन के सामने जमा थे। टॉस के लिए दोनों कप्तानों को माइक्रोफ़ोन की ओर बुलाया गया, लेकिन टॉस के बाद किसी भी तरह की पारस्परिक अभिवादन नहीं दिखा। हर्मनप्रीत कौर ने सीधे बॉल के साथ बॉलिंग टीम को चुनते हुए कहा, "भारत चुनता है" और फिर माइक्रोफ़ोन को नीचे रख दिया। फातिमा सना ने भी कोई हाथ मिलाने या मुस्कुराने की कोशिश नहीं की। कैमरों ने इस क्षण को रीयल‑टाइम में कैप्चर कर दर्शकों को दिखाया।

यह नजरअंदाज दिखाता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने स्पष्ट रूप से नियम नहीं, बल्कि एक सिग्नल दिया है: पाकिस्तान के साथ कोई सामाजिक जुड़ाव नहीं। दूसरी तरफ पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) ने इस कदम को "स्पोर्ट्समैनशिप की चोट" कहा और ICC से अनुसंधान के लिए अनुरोध किया।

खेल में हुई जीत और आँकड़े

  • भारत ने 50 ओवर में 247 रन बनाकर लक्ष्य स्थापित किया।
  • पाकिस्तान 43 ओवर में 159 रन पर आउट हुआ।
  • हर्मनप्रीत कौर ने 68 रन बनाकर टीम को स्थिर रखी।
  • फातिमा सना ने 27 बैटिंग पॉइंट्स के साथ टीम की आशा बनाए रखी, लेकिन विकेटों की कमी रही।
  • भारतीय गेंदबाजों ने 9 विकेट लिए, जबकि पाकिस्तान के गेंदबाज केवल 4 विकेट ही ले पाए।

जैसे-जैसे रनों की गणना हुई, दर्शकों के चेहरे पर उत्साह मिला, लेकिन पत्रकारों की कवरेज तुरंत टॉस पर ही केंद्रित हो गई। कई टीवी एंकर ने कहा, "खेल का असली नचौना तो हाथ मिलाने का नहीं, बल्कि जीत की भावना है।"

प्रतिक्रिया और विशेषज्ञों की राय

प्रतिक्रिया और विशेषज्ञों की राय

इंडिया के प्रमुख खेल विश्लेषक राजीव सैनी ने टिप्पणी की, "हैंडशेक से इनकार का मतलब है कि खेल के बाहर की राजनीति ने मैदान में प्रवेश कर लिया है। यह युवा खिलाड़ियों के मनोबल को प्रभावित कर सकता है।" दूसरी ओर, लाहौर के क्रिकेट पत्रकार अली अहमद ने कहा, "पाकिस्तान की टीम ने भी इस पर कोई निषेध नहीं किया, बल्कि उन्होंने खेल को सम्मान दिया।" ICC के प्रवक्ता ने बताया कि “अधिकारिक नियम में हाथ मिलाना अनिवार्य नहीं है, लेकिन यह खेल भावना का प्रतीक माना जाता है।”

भविष्य की संभावनाएँ और संभावित प्रभाव

अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो आगामी टी‑20 विश्व कप 2026 में दोनों टीमों के बीच समान टेंशन देखी जा सकती है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों बोर्डों को एक मध्यस्थ समिति बनाकर इस मुद्दे को सुलझाना चाहिए, वरना दो-तरफ़ा खेल में दर्शकों की रुचि घटेगी। इस बीच, भारत‑पाकिस्तान दोनों देशों के प्रशंसकों ने सोशल मीडिया पर दोराहे की राय दी—कुछ ने कौर और सना को समर्थन दिया, तो कुछ ने खेल भावना की क्षति को लेकर निराशा जताई।

बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न

यह घटना भारतीय महिला क्रिकेट को कैसे प्रभावित करेगी?

हाथ मिलाने से इनकार का संदेश युवा खिलाड़ीं को दिखा रहा है कि खेल में राजनीति का स्थान बढ़ रहा है। बृहत् स्तर पर, इसे टीम की एकजुटता और मनोबल पर प्रभाव डालने की संभावना है, जिससे कोचिंग स्टाफ को मानसिक समर्थन प्रोग्राम लागू करने पड़ सकते हैं।

पाकिस्तानी महिला क्रिकेट को इस तनाव से क्या फायदा या नुकसान होगा?

पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर कम समर्थन मिलेगा, क्योंकि कई साझेदार बोर्ड अब खेल के बाहर की राजनीति को लेकर सतर्क हो रहे हैं। फिर भी, टीम की दृढ़ता बढ़ाने के लिए यह एक प्रेरणा बन सकती है, जिससे खिलाड़ीं अधिक प्रतिस्पर्धी बनें।

हैंडशेक न करने की नीति की शुरुआत क्यों हुई?

2019 में हुए कगार तनाव और 2025 के एशिया कप के बाद BCCI ने रणनीतिक रूप से यह कदम उठाया था, ताकि पाकिस्तान के साथ किसी भी सामाजिक संकेतन को रोका जा सके। यह नीति असली तौर पर सुरक्षा, राष्ट्रीय गर्व और प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को जोड़ती है।

ICC के नियमों में हाथ मिलाने का क्या स्थान है?

ICC ने आधिकारिक रूप से हाथ मिलाने को कोई अनिवार्य प्रावधान नहीं बनाया है, लेकिन खेल भावना को बढ़ावा देने के लिए इसे परम्परा माना जाता है। यदि दोनों पक्ष असहमत हों, तो प्रशासकीय नियमों में कोई उल्लंघन नहीं माना जाता।

आगे के अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में इस स्थिति का क्या परिणाम हो सकता है?

यदि दोनों बोर्ड समझौता नहीं करते, तो भविष्य के वर्ल्ड कप, टी‑20 विश्व कप और एशिया कप में मिलते-जुलते टॉस‑सेरिमनी में फिर से हाथ मिलाने से इनकार देखने को मिल सकता है। यह दर्शकों की आकर्षण घटा सकता है और प्रायोजन कंपनियों को निराश कर सकता है।

11 टिप्पणि
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    smaily PAtel अक्तूबर 6, 2025 AT 00:33

    हर्मनप्रीत कौर और फातिमा सना की इस हस्तक्षेप को देखते हुए, बहुत ही स्पष्ट हो जाता है; कि रस्म‑रिवाज़ों का दायरा अब राजनीति के पुलिंदा बन गया है, और इससे खेल की शुद्धता पर प्रश्न उठता है, क्या यह रणनीति अस्थायी है; या दीर्घकालिक टैक्टिकल कदम? ICC ने इस विषय पर आधिकारिक टिप्पणी नहीं दी है; जबकि मीडिया चैनलों ने तुरंत ही इस मुद्दे को हाइलाइट कर दिया है। इस तरह की ड्रामैटिक स्थितियों में, दर्शकों का फोकस खेल की तकनीकी हिस्से से हट कर प्रतीकात्मक इशारों पर आ जाता है। अंततः, यह सवाल बना रहता है कि क्या इस प्रकार की नज़र‑अंदाज़ी दोनों पक्षों के युवा खिलाड़ियों को नकारात्मक प्रभाव डालती है।

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    Hemanth NM अक्तूबर 6, 2025 AT 14:26

    हाथ मिलाना तो वैकल्पिक है, जीत ही असली बात है।

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    rin amr अक्तूबर 7, 2025 AT 04:20

    इंसाफ़ की बात करें तो, इस तरह के हस्ताक्षर‑इन्कार को सिर्फ कूटनीति के रूप में नहीं, बल्कि एक रणनीतिक खेल‑नीति के रूप में भी देखना चाहिए। भारत‑पाकिस्तान के बीच हमेशा से तनाव बना रहा है, परंतु खेल का मैदान आदर्श रूप से उस तनाव को कम करने का मंच होना चाहिए। वर्तमान स्थिति में, दोनों कप्तानों ने अपनी-अपनी टीमों की गरिमा को प्राथमिकता दी, यह स्वाभाविक है। फिर भी, अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को ऐसे संकेत मिलते हैं जो दो देशों के बीच की शत्रुता को और गहरा कर सकते हैं। इस पहलू से, बॉल‑ड्रॉप के बाद की कोई भी शारीरिक अभिवादन नहीं होना, एक संकेतिक संदेश बन जाता है। चाहे आप इसे 'स्पोर्ट्समैनशिप की चोट' मानें या 'राष्ट्रवादी दृढ़ता', यह स्पष्ट है कि राजनीति अब खेल के हर कोने में घुली हुई है। अंत में, हमें यह सोचना चाहिए कि क्या इस तरह के इशारों से युवा खिलाड़ियों के मनोबल पर असर पड़ता है, या वे इसे सामान्य मानते हैं।

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    Jai Bhole अक्तूबर 7, 2025 AT 18:13

    देशभक्ति की भावना में डूबी हर बात को हम अक्सर दार्शनिक बनाते हैं; पर यहाँ तो बस एक साधारण हाथ मिलाने से भी बड़ी जंग का आभास है। फातिमा सना ने भी जी‑जान से कह दिया, 'हम कोई हाथ नहीं मिलाते'-जैसे कोई बड़ी बात हो। ऐसी स्थिति में, क्या हमें खेल को राजनीति से अलग रखने का साहस है? नहीं, क्योंकि हर बॉल के पीछे छिपा है एक गहरा राष्ट्रीय अभिमान।

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    rama cs अक्तूबर 8, 2025 AT 08:06

    सैद्धांतिक तौर पर, एथ्लेटिक इंटरैक्शन की डिस्कोर्स में 'सेमी-ऑटोनॉमी' शब्द को शामिल किया जा सकता है; परंतु व्यवहार में, यह परिप्रेक्ष्य केवल शब्दजाल रह जाता है। इस घटनाक्रम को 'सिंबायोटिक रीस्ट्रिक्शन' के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जहाँ दोनों पक्ष परस्पर प्रतिबंधात्मक संकेत भेजते हैं। इससे न केवल टैक्टिकल मैकेनिक्स पर असर पड़ता है, बल्कि न्यूरो‑इमोशनल कॉम्प्लेक्स भी व्याकुल हो जाता है। इस प्रकार की 'कोडिंग' दर्शकों के लिए समझना कठिन हो जाता है, और खेल का मूल उद्देश्य धुंधला पड़ता है। अंत में, हमें इस जटिल तंत्र को सरल शब्दों में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, ताकि आम जनता भी इस विवाद को सराह सके।

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    Monika Kühn अक्तूबर 8, 2025 AT 22:00

    हाथ मिलाने के बजाय, अब सिर्फ जीत की गलीची लेकर आए हैं-काफ़ी नई रणनीति। देखते हैं कब तक इस 'सपोर्टिव हार्डलाइन' को बॉल के साथ चलाते रहेंगे।

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    Surya Prakash अक्तूबर 9, 2025 AT 11:53

    नैतिक दृष्टिकोण से, इस तरह के निर्णय को निंदनीय कहा जा सकता है। परन्तु, यदि हम टीम की सामूहिक भावना को देखें, तो यह शायद एक आवश्यक कदम हो। फिर भी, इस प्रथा को निराधार मानना उपयुक्त नहीं।

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    Sandeep KNS अक्तूबर 10, 2025 AT 01:46

    माननीय महोदयों एवं महोदयों, इस परिदृश्य को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि खेल के नियमावली में अब शिष्टाचार का अध्याय सम्मिलित किया जाना उचित होगा। तथापि, वर्तमान में ICC ने इस पहलू पर कोई अनिवार्य धारा नहीं रखी है, जिससे यह स्पष्ट है कि यह केवल प्रतीकात्मक महत्व रखता है। इस प्रतीकात्मकता को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि दोनों पक्ष अपनी-अपनी राष्ट्रीय अभिमान को दृढ़ता से प्रदर्शित कर रहे हैं। इस प्रकार का प्रदर्शन, यद्यपि अनपेक्षित है, परंतु अंतरराष्ट्रीय मंच पर राजनयिक संकेतों का एक रूप हो सकता है। अंत में, यह प्रश्न उठता है कि क्या खेल के इस महान मंच पर हमें ऐसे राजनयिक खेलों को स्थान देना चाहिए, या हमें शुद्ध खेल भावना को पुनर्स्थापित करना चाहिए। आशा है कि भविष्य में ऐसी स्थितियों से बचने के लिए उचित प्रोटोकॉल तैयार किए जाएंगे।

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    Ayan Kumar अक्तूबर 10, 2025 AT 15:40

    क्या आप देख रहे हैं कि कैसे एक साधारण टॉस भी अब पूरे महादेश की राजनीति में बदल जाता है?
    मैं तो कहूँगा, यह पूरी तरह से स्क्रिप्टेड ड्रामा है, जहाँ हर पात्र को पहले से ही अपने-अपने संवाद मिले होते हैं।
    हर्मनप्रीत कौर ने बॉल के साथ ही सिद्ध कर दिया कि खेलने से पहले गणित की तरह फैसला करना जरूरी है।
    फातिमा सना ने भी जवाब में वही कर दिखाया कि कैसे इतिहास के पन्नों को नई कथा में लिखना चाहिए।
    ऐसे में दर्शकों को अब सिर्फ रन या विकेट नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व की ख़ुराक भी मिलती है।
    जब तक टॉस के बाद हाथ नहीं मिलते, तब तक दुनिया की राजनीति को एक क्षण के लिए रोकना संभव नहीं लगता।
    इसीलिए कई विशेषज्ञों ने कहा है कि इस तरह की इशारें खेल के असली आकर्षण को कमजोर कर देते हैं।
    पर मैं यह भी मानता हूँ कि यदि हम इस सीरिज को एक बड़े सामाजिक प्रयोग के रूप में देखें, तो यह काफी रोचक भी हो सकता है।
    क्योंकि प्रत्येक हाथ मिलाने या न मिलने का इशारा अब एक सामाजिक संदेश बन चुका है।
    और इस सामाजिक संदेश का असर न केवल खिलाड़ियों पर, बल्कि युवा जेनरेशन पर भी पड़ता है।
    वास्तव में, यह एक तरह का सॉफ़्ट पावर है, जिसे हम अभी समझ नहीं पाए हैं।
    इस सॉफ़्ट पावर की ताकत को मापना कठिन है, लेकिन उसकी लहरें पहले ही दर्शकों के दिलों में गूँज रही हैं।
    फिर भी, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि क्रिकेट आखिरकार एक खेल है, न कि राजनयिक मंच।
    क्या यह संभव है कि हम इस खेल को फिर से शुद्ध बनाएं, बिना किसी राजनीतिक लेंस के?
    यदि नहीं, तो हमें इस नई वास्तविकता को स्वीकार करना ही पड़ेगा, और शायद नए नियम भी बनाने पड़ेंगे।
    आखिर में, यह हमारा ही कर्तव्य है कि हम इस घटनाक्रम को समझें और आगे की पीढ़ी के लिए बेहतर मंच तैयार करें।

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    Nitin Jadvav अक्तूबर 11, 2025 AT 05:33

    अरे, तुम्हारी ड्रामा तो पूरी फिल्मी ट्रेलर जैसा लग रहा है-पर असली खेल में तो बस बीट्स और बॉल होते हैं। अगले मैच में अगर टीम यही 'सॉफ्ट पावर' दिखाए, तो जीत की गारंटी नहीं, बस बटरफ्लाई चर्चा होगी।

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    Arun kumar Chinnadhurai अक्तूबर 11, 2025 AT 19:26

    तुम्हारी बात में कुछ सच्चाई है, लेकिन याद रखो कि युवा खिलाड़ी अक्सर इन संकेतों को बहुत गंभीरता से ले लेते हैं। उन्हें संतुलन स्थापित करने के लिए एक सपोर्ट समूह की जरूरत होती है, जहाँ वे खेल और राजनीति को अलग-अलग समझ सकें। आइए हम सभी मिलकर एक ऐसा माहौल तैयार करें जहाँ तकनीकी कौशल ही मुख्य हो, न कि राजनीतिक इशारे।

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